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Explainer: विकास का नया द्वार या पर्यावरणीय तबाही का कारण? जानिए ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट पर क्यों मचा घमासान

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट भारत की समुद्री सुरक्षा और व्यापारिक शक्ति को बढ़ाने का प्रयास है, लेकिन इसके चलते पर्यावरणीय विनाश और आदिवासी विस्थापन की आशंका गहराती जा रही है। सोनिया गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं ने इसे संवैधानिक और नैतिक संकट बताया है।
Post Published By: सौम्या सिंह
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Explainer: विकास का नया द्वार या पर्यावरणीय तबाही का कारण? जानिए ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट पर क्यों मचा घमासान

New Delhi: ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट को लेकर देश की राजनीति में एक बार फिर बहस तेज हो गई है। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने हाल ही में एक लेख में इस परियोजना की तीखी आलोचना की है और इसे आदिवासी अधिकारों, पर्यावरण और संविधानिक मूल्यों पर हमला बताया है। दूसरी ओर, केंद्र सरकार इसे भारत की रणनीतिक मजबूती और विकास की दिशा में एक बड़ा कदम बता रही है।

तो आखिर क्या है ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट? इसे लेकर विवाद क्यों है? और भारत के लिए यह कितना अहम है? आइए विस्तार से समझते हैं।

क्या है ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट?

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट एक बहु-आयामी बुनियादी ढांचा योजना है, जिसे भारत सरकार ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सबसे दक्षिणी द्वीप, ग्रेट निकोबार में लागू करने का निर्णय लिया है। इस परियोजना का उद्देश्य इस द्वीप को रणनीतिक, व्यापारिक और पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करना है।

परियोजना के मुख्य घटक

इंटरनेशनल कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT)- गलाथिया खाड़ी में 16 मिलियन TEU क्षमता वाला गहरे समुद्र का बंदरगाह।

ग्रीनफील्ड इंटरनेशनल एयरपोर्ट- जिसकी क्षमता 2050 तक 4,000 यात्री प्रति घंटा होगी।

450 मेगावाट का पावर प्लांट- गैस और सौर ऊर्जा आधारित।

प्लान्ड टाउनशिप- 3 से 4 लाख लोगों के लिए शहर, जिसमें घर, कार्यालय, बाजार आदि शामिल होंगे।

अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर- सड़कें, पानी की आपूर्ति, लॉजिस्टिक्स केंद्र आदि।

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट (फोटो सोर्स-इंटरनेट)

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट का क्या होगा लागत?

अनुमानित लागत: ₹81,000 करोड़

परियोजना क्रियान्वयन: अंडमान निकोबार द्वीप समन्वित विकास निगम (ANIIDCO) के माध्यम से

नीति आयोग द्वारा निगरानी

पर्यावरण और वन मंत्रालय से 2022 में सशर्त मंजूरी मिल चुकी है।

भारत के लिए क्यों है यह प्रोजेक्ट अहम?

ग्रेट निकोबार द्वीप मलक्का जलडमरूमध्य के निकट स्थित है- जो दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में से एक है। यहां से- वैश्विक व्यापार का 30-40% गुजरता है, चीन की ऊर्जा आपूर्ति का बड़ा हिस्सा इसी मार्ग से आता है, इस क्षेत्र में भारत की मजबूत उपस्थिति उसे नौसेनिक और वायु निगरानी की बढ़त देती है।

चीन को रणनीतिक चुनौती

चीन ने म्यांमार, श्रीलंका और पाकिस्तान में बंदरगाहों के जरिए ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति को मजबूत किया है। ग्रेट निकोबार में एक अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह- भारत को क्षेत्रीय समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करेगा, वैश्विक शिपिंग को चीनी बंदरगाहों के विकल्प देगा, इंडो-पैसिफिक रणनीति में भारत की भूमिका को बढ़ाएगा।

क्वाड और रक्षा हित

यह परियोजना भारत को QUAD (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) जैसे सहयोगों में एक मजबूत खिलाड़ी बनाएगी।
भारत का एकमात्र त्रि-सेवा कमांड- अंडमान और निकोबार कमांड- इस क्षेत्र से निगरानी और सुरक्षा संचालन करेगा।

आपदा प्रबंधन और मानवीय सहायता

2004 की सुनामी ने इस क्षेत्र में भारत की सीमित प्रतिक्रिया क्षमता को उजागर किया था।

नई बंदरगाह और एयरपोर्ट भारत को मानवीय राहत मिशनों में तेजी से तैनाती की सुविधा देगा।

दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की सुरक्षा प्रदाता की भूमिका को मजबूत करेगा।

तो फिर विरोध क्यों?

हाल ही में ‘द हिंदू’ में प्रकाशित एक लेख में सोनिया गांधी ने इस परियोजना को ‘योजनाबद्ध गलत साहसिक कदम’ बताया।

सोनिया गांधी (फोटो सोर्स-इंटरनेट)

उनके अनुसार, यह आदिवासी अधिकारों को कुचलता है, संवैधानिक, कानूनी और पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों की अनदेखी करता है। उनके अनुसार, स्थानीय निकोबारी जनजातियों को उनके पुश्तैनी गाँवों से स्थायी रूप से विस्थापित कर देगा। उनका कहना है 2004 की सुनामी के बाद इन जनजातियों ने अपने गाँवों में लौटने का सपना देखा था, जो अब टूट सकता है।

पर्यावरणीय चिंता

8.5 लाख से लेकर 58 लाख पेड़ों तक की कटाई की आशंका जताई जा रही है

निकोबार मेगापोड, लेदरबैक कछुआ जैसी दुर्लभ प्रजातियों का निवास खतरे में

पारिस्थितिकीविदों का कहना है कि यह क्षेत्र रेनफॉरेस्ट जैव विविधता से भरपूर है, जिसे पुनर्स्थापित करना असंभव है

मुआवजा वनीकरण पर सवाल

सरकार का कहना है कि कंपंसेटरी एफोरेस्टेशन किया जाएगा। लेकिन सोनिया गांधी का तर्क है कि, पुराने वर्षावनों की जैविक जटिलता और पारिस्थितिक मूल्य की भरपाई कृत्रिम वनों से संभव नहीं

आदिवासी अधिकार और FRA का उल्लंघन?

राहुल गांधी ने आपत्ति जताते हुए जनजातीय मामलों के मंत्री को पत्र लिखकर सवाल उठाया कि, ‘क्या वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत स्थानीय जनजातियों से अनुमति ली गई?’ उनके अनुसार- शोम्पेन और निकोबारी जनजातियाँ (PVTGs) पहले ही 2004 में विस्थापित हो चुकी हैं और अब इस प्रोजेक्ट से उनकी संस्कृति, जमीन और जीवनशैली पर स्थायी खतरा मंडरा रहा है।

प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)

 

क्या यह आपदा को न्योता है?

ग्रेट निकोबार उच्च जोखिम वाले भूकंप और सुनामी क्षेत्र में आता है और यह 2004 की सुनामी में यह द्वीप 15 फीट तक डूब गया था। जयराम रमेश का कहना है कि, इतने बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य भविष्य की आपदाओं को आमंत्रण दे सकते हैं।

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सरकार की दलील: रणनीति और रोजगार

सरकार का कहना है कि, यह प्रोजेक्ट भारत को एक वैश्विक समुद्री हब बनाएगा और स्थानीय रोजगार, पर्यटन और आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा देगा। वनीकरण और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए कदम उठाए जाएंगे।  ANIIDCO और नीति आयोग के अधिकारियों के अनुसार, हम आदिवासी अधिकारों और पर्यावरण दोनों का सम्मान करते हुए इस प्रोजेक्ट को लागू करेंगे।

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विकास बनाम संरक्षण की जंग

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट एक तरफ भारत के लिए रणनीतिक और सुरक्षा दृष्टिकोण से बेहद अहम है, लेकिन दूसरी ओर इससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और आदिवासी संस्कृति पर गंभीर असर पड़ सकता है। क्या भारत इस प्रोजेक्ट को ‘सस्टेनेबल’ तरीके से आगे बढ़ा सकता है? क्या स्थानीय समुदायों को वास्तव में लाभ मिलेगा या वे विकास की कीमत चुकाएंगे? इन सवालों का जवाब ही इस प्रोजेक्ट के भविष्य को तय करेगा।

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