

अमेरिकी सीनेट में पेश हल्टिंग इंटरनेशनल रिलॉकेशन ऑफ एंप्लॉयमेंट (HIRE) एक्ट भारतीय आईटी सेक्टर के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। प्रस्तावित कानून के तहत आउटसोर्सिंग पर 25% टैक्स लगाने की योजना है, जिससे अमेरिकी कंपनियों की लागत बढ़ेगी और भारत के सर्विस एक्सपोर्ट्स पर बुरा असर पड़ेगा।
आउटसोर्सिंग पर 25% टैक्स का प्रस्ताव
Washington: अमेरिका की नई नीतियों ने भारत की आईटी इंडस्ट्री की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पहले ही भारतीय सामानों पर भारी टैरिफ लगाने से व्यापार पर असर पड़ा है, अब अमेरिका ने सर्विस एक्सपोर्ट्स पर निशाना साधते हुए एक नया बिल पेश किया है। हल्टिंग इंटरनेशनल रिलॉकेशन ऑफ एंप्लॉयमेंट (HIRE) एक्ट नामक इस प्रस्ताव में अमेरिकी कंपनियों द्वारा विदेशी कंपनियों, खासकर भारतीय आईटी कंपनियों को दिए जाने वाले सेवा शुल्क पर 25 प्रतिशत टैक्स लगाने की तैयारी है। यह प्रस्ताव यदि कानून बनता है तो भारत की आईटी कंपनियों के लिए यह बड़ा झटका साबित होगा।
आईटी एक्सपोर्ट्स भारत के लिए आय का महत्वपूर्ण स्रोत हैं और अमेरिका इसके सबसे बड़े ग्राहकों में शामिल है। अमेरिका में कामकाज आउटसोर्स करने वाली कंपनियाँ भारतीय कंपनियों के माध्यम से सॉफ्टवेयर, क्लाउड सेवाएँ, डेटा प्रोसेसिंग, कस्टमर सपोर्ट और अन्य सेवाएँ प्राप्त करती हैं।
IT इंडस्ट्री पर संकट
HIRE एक्ट लागू होने पर अमेरिकी कंपनियों को न सिर्फ सेवा शुल्क पर अतिरिक्त टैक्स देना पड़ेगा, बल्कि राज्य और स्थानीय करों के साथ-साथ उत्पाद शुल्क भी चुकाना होगा। अनुमान है कि कुल लागत में 60 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है, जिससे भारतीय सेवा प्रदाताओं की प्रतिस्पर्धा क्षमता पर बुरा असर पड़ेगा।
इस बिल को अमेरिकी रिपब्लिकन सीनेटर बर्नी मोरेनो ने पेश किया है। इसके तहत अमेरिकी कंपनियों द्वारा विदेशी इकाइयों को भुगतान की जाने वाली किसी भी सेवा शुल्क, प्रीमियम, रॉयल्टी या अन्य भुगतान को आउटसोर्सिंग माना जाएगा।
इसका असर सीधे तौर पर उन सेवाओं पर पड़ेगा, जिनका लाभ अमेरिका के उपभोक्ताओं को मिलता है। विशेषज्ञ इसे उत्पाद शुल्क के रूप में देख रहे हैं, न कि कॉरपोरेट आयकर के रूप में। प्रस्तावित टैक्स से जो भी राजस्व मिलेगा, उसे अमेरिका के मध्यम वर्ग के विकास कार्यक्रमों पर खर्च किया जाएगा।
आईटी क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रस्ताव भारत की आर्थिक वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा सेवा निर्यात बाजार है। यदि यह कानून लागू होता है तो अमेरिकी कंपनियाँ आउटसोर्सिंग कम कर सकती हैं, जिससे भारतीय कंपनियों की आय घटेगी और कई परियोजनाएँ प्रभावित होंगी। साथ ही, लागत बढ़ने से नई साझेदारियाँ और निवेश भी धीमे पड़ सकते हैं।
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यह बिल अभी अमेरिकी संसद में विचाराधीन है और इसे पास होने में समय लग सकता है। हालांकि, भारतीय सरकार और कंपनियाँ पहले से ही संभावित प्रभावों का आकलन कर रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को वैकल्पिक बाजार तलाशने, सेवा गुणवत्ता बढ़ाने और लागत में संतुलन बनाए रखने की रणनीति अपनानी होगी ताकि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बना रहे।