Nainital: कुमाऊं क्षेत्र में दीपावली का पर्व खास तरह से मनाया जाता है। यहां की एक सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार, दिवाली के दिन महिलाएं और परिवारजन मिलकर गन्ने के तनों से मां महालक्ष्मी की प्रतिमा बनाते हैं। यह परंपरा आज भी पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ निभाई जाती है। गन्ने से बनी इस प्रतिमा की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आने की मान्यता है।
गन्ने में लक्ष्मी का निवास
गन्ने को स्कंद पुराण में भी माता लक्ष्मी का प्रिय बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गन्ने के तनों में लक्ष्मी माता का वास होता है, इसलिए दीपावली पर गन्ने से बनी प्रतिमा की पूजा से घर में लक्ष्मी का वास होता है और घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
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सकांद पुराण और गन्ने का धार्मिक महत्व
धार्मिक ग्रंथों में गन्ने के महत्व को विशेष रूप से बताया गया है। स्कंद पुराण के अनुसार गन्ने की पूजा से मनुष्य की समृद्धि बढ़ती है और उसका जीवन सुखमय होता है। इस परंपरा का पालन कुमाऊं में सदियों से होता आ रहा है, और आज भी लोग इस परंपरा को पूरे श्रद्धा भाव से निभाते हैं।
पारंपरिक पूजा और विसर्जन की प्रक्रिया
दीपावली की रात को गन्ने से बनी प्रतिमा की पूजा अर्चना के बाद, भैया दूज या गोवर्धन पूजा के दिन इसे नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है। इस दौरान शुभ मुहूर्त में प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है, जिससे घर में लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और जीवन में समृद्धि आती है। इस परंपरा का उद्देश्य केवल पूजा करना नहीं है, बल्कि घर के प्रत्येक सदस्य के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाना है।
इतिहासकारों का दृष्टिकोण
इतिहासकारों का मानना है कि यह परंपरा 17वीं शताब्दी से चली आ रही है। उन दिनों से लेकर अब तक, कुमाऊं क्षेत्र के लोग इसे पूरे विश्वास और श्रद्धा के साथ निभाते आ रहे हैं। यह परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि कुमाऊं के सांस्कृतिक धरोहर का भी एक अभिन्न हिस्सा बन चुकी है।
गन्ने की बढ़ती मांग और बाजारों में हलचल
दीपावली के समय में, कुमाऊं के बाजारों में गन्ने की मांग अचानक बढ़ जाती है। हरिद्वार और देहरादून जैसे गन्ना उत्पादन क्षेत्रों से बड़ी मात्रा में गन्ना मंगवाया जाता है। अब गन्ने के एक तने की कीमत 70 से 80 रुपये तक पहुंच गई है, जिससे बाजार में हलचल मची हुई है।
गन्ने की कीमत और बाजार का प्रभाव
गन्ने की बढ़ती कीमतों का असर कुमाऊं के ग्रामीण इलाकों पर भी पड़ा है। लेकिन इस बढ़ी हुई कीमत के बावजूद, लोग इस परंपरा को निभाने के लिए गन्ने की खरीददारी कर रहे हैं। गन्ने का इस्तेमाल सिर्फ एक कृषि उत्पाद के रूप में नहीं, बल्कि लक्ष्मी के प्रतीक के रूप में किया जाता है।
गन्ने की पूजा
गन्ने से बनी मां महालक्ष्मी की प्रतिमा की पूजा एक सांस्कृतिक और धार्मिक समृद्धि का प्रतीक बन चुकी है। यह परंपरा केवल कुमाऊं क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में भी इसे श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। दीपावली के समय जब गन्ने से प्रतिमा बनाई जाती है, तो यह एक सामूहिक भावना को जन्म देती है, जिसमें गांव के लोग मिलकर त्योहार मनाते हैं।
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संस्कृति और श्रद्धा का संगम
कुमाऊं क्षेत्र में दीपावली पर गन्ने से लक्ष्मी प्रतिमा बनाने की परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का भी हिस्सा बन चुकी है। यह परंपरा एकता और सामूहिकता का प्रतीक है, जिसमें हर व्यक्ति और परिवार अपने परिवार के लिए शुभकामनाएं और समृद्धि की कामना करता है।