Haridwar: हरिद्वार जनपद के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल पिरान कलियर में हज़रत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक रहमतुल्ला अलैह का 757वां सालाना उर्स-ए-साबिर पाक इस बार भी पूरी शान-ओ-शौकत से मनाया जाएगा। इस मुबारक मौके की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और दरगाह परिसर को सजाने-संवारने का कार्य तेजी से चल रहा है।
सज्जादानशीन शाह अली एजाज कुद्दूसी साबरी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि इस सालाना उर्स की शुरुआत रबीउल अव्वल की पहली तारीख से होगी। रविवार को नमाज-ए-असर के बाद दरगाह के मुख्य द्वार पर परचमकुशाई की रस्म अदा की जाएगी। इसी के साथ चांद दिखाई देने के बाद कदीमी घर से पारंपरिक मेहंदी डोरी निकाली जाएगी और दरगाह शरीफ में पेश की जाएगी।
मुख्य धार्मिक रस्में इस प्रकार होंगी
- 11 रबीउल अव्वल: हज़रत गौस पाक रहमतुल्ला अलैह का कुल शरीफ एवं महफिल-ए-समा
- 12 रबीउल अव्वल: बड़ी रोशनी (ईद मिलादुन्नबी), दिन में जश्न-ए-मिलाद और रात को नातिया महफिल
- 13 रबीउल अव्वल: हज़रत साबिर पाक का कुल शरीफ, दस्तारबंदी और पारंपरिक कव्वाली
- 14 रबीउल अव्वल: सुबह गुस्ल शरीफ, रात को ख्वाजा बख्तियार काकी रहमतुल्ला अलैह का कुल शरीफ
- 17 रबीउल अव्वल: मगरिब के बाद साबिर पाक के वालिद हज़रत अब्दुलरहीम शाह रहमतुल्ला अलैह का कुल शरीफ
सज्जादानशीन ने जानकारी दी कि यह उर्स लगभग 20 दिनों तक चलेगा, जिसमें देशभर से लाखों जायरीन, सूफी संत और कव्वाल भाग लेंगे। यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब और सूफी परंपरा की झलक को भी दर्शाता है।
प्रेस वार्ता में शाह यावर मियां, असद साबरी सहित परिवार के अन्य सदस्य मौजूद रहे। सज्जादानशीन ने बताया कि उर्स के दौरान खानकाह कमेटी एवं जिला प्रशासन द्वारा जायरीन की सुविधा हेतु व्यापक प्रबंध किए जा रहे हैं। दरगाह परिसर को विशेष तौर पर सजाया जा रहा है ताकि देशभर से आने वाले श्रद्धालु इस आध्यात्मिक पर्व का आनंद उठा सकें।
हर साल की तरह इस बार भी पिरान कलियर की दरगाह आस्था, आध्यात्म और सूफियत के रंगों में रंगी रहेगी। यह आयोजन लोगों को जोड़ने और प्रेम, सौहार्द तथा आध्यात्मिकता का संदेश देने का कार्य करता है।
पिरान कलियर, हरिद्वार में 757वां सालाना उर्स-ए-साबिर पाक रबीउल अव्वल की पहली तारीख से शुरू होगा। सज्जादानशीन शाह अली एजाज कुद्दूसी साबरी की देखरेख में धार्मिक रस्मों की तैयारी जोरों पर है। लाखों जायरीन की आमद के साथ यह आयोजन सूफी परंपरा और गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक बनेगा।