नैनीताल के कैंची धाम में बाबा नीम करौली महाराज को कंबल चढ़ाने की परंपरा आज भी बेहद पवित्र मानी जाती है। भक्त इसे सिर्फ श्रद्धा नहीं बल्कि बाबा के आशीर्वाद का प्रतीक मानते हैं। इस अनोखी परंपरा के पीछे वह पुरानी कथा है, जब बाबा ने एक कंबल के माध्यम से एक सैनिक की जान बचाई थी। इसी वजह से कंबल यहां विश्वास और करुणा की पहचान बन गया है।

कैंची धाम
Nainital: नैनीताल की हरी भरी पहाड़ियों के बीच बसे कैंची धाम मंदिर के आँगन में कदम रखते ही लोगों के मन का बोझ हल्का होने लगता है। यहां आने वाला हर भक्त अपनी जिंदगी की समस्याएं, उम्मीदें और मन में छिपी परेशानियां लेकर आता है। और जैसे ही बाबा नीम करोली की झलक मिलती है, एक शांति दिल में उतर जाती है। ऐसा लगता है कि बाबा भले ही शरीर से यहां न हों, लेकिन उनकी उपस्थिति आज भी हवा में महसूस होती है।
कहते हैं कि बाबा किसी की भी चिंता बिना बोले समझ लेते थे। उनका कंबल, उनकी सादगी और उनका शांत चेहरा ही लोगों के लिए सहारा बन जाता था। बाबा ने अपने जीवन में कभी कोई बड़ा दावा नहीं किया, लेकिन उनके बारे में जितनी भी कहानियां सुनी जाती हैं उनमें एक बात हमेशा सामने आती है कि बाबा दूसरों की तकलीफ अपने ऊपर ले लेते थे। जिसकी वजह से आज भी कैंची धाम में कंबल चढ़ाने की परंपरा बेहद खास मानी जाती है
लोगों का कहान कि बाबा के कंबल में एक अनोखी शक्ति थी। एक पुरानी कहानी आज भी भक्तों के दिल में गहराई से बसी है। कुछ पुराने लोगों ने बताया कि फतेहगढ़ में रहने वाले एक गरीब बुजुर्ग दंपति के घर बाबा रात को पहुँचे थे। दंपति ने जितना हो सका, उतना खाने को दिया और रात में बाबा को एक पुराना-सा कंबल ओढ़ा दिया। रात भर बाबा कराहते रहे, जैसे कोई उन पर हमला कर रहा हो। दंपति घबराए, लेकिन कुछ समझ नहीं पाए। सुबह बाबा ने वही कंबल वापस दिया और कहा कि इसे बिना खोले सीधे गंगा में बहा देना।
पहाड़ी रास्ते पर चलते हुए दंपति को कंबल अजीब तरह से भारी महसूस होने लगा। फिर भी उन्होंने बाबा की बात मानकर उसे नदी में बहा दिया। कुछ समय बाद उन्हें यह खबर मिली कि उनका बेटा, जो बर्मा में युद्ध के बीच फंसा था, गोलियों की बौछार में चमत्कारिक रूप से बच गया है। उसके साथ गए कई सैनिक मौके पर ही मारे गए, पर उसे कोई चोट नहीं आई। तब लोगों को समझ आया कि बाबा की रात वाली कराह शायद उसी संघर्ष का दर्द था, जिसे उन्होंने अपने ऊपर ले लिया था ताकि उस जवान की जान बच सके।
इसी कहानी के कारण आज भी कैंची धाम में कंबल सिर्फ कपड़ा नहीं माना जाता। भक्त इसे बाबा की कृपा का प्रतीक मानते हैं। लोग अपने मन की मुराद होने के बाद या फिर कोई भी खुशी का मौका हो तो बाबा को कंबल चढ़ाते है। यह कंबल बाबा के चरणों में छूवाकर भक्त अपने साथ ही ले आते है जिसको नीम करौरी महाराज का आशीर्वाद मानते है। कोई इसे अपने घर ले जाकर बीमार लोगों को ओढ़ाता है, कोई मुश्किल वक्त में इसके पास बैठकर प्रार्थना करता है और कोई इसे बुजुर्गों के लिए सौभाग्य मानता है। यहां तक कि कई लोग कहते हैं कि कंबल में बाबा काआशीर्वाद आज भी जीवित है।
कैंची धाम की यही खूबसूरती है।
यहां न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का एहसास होता है, बल्कि यह भी महसूस होता है कि किसी अदृश्य शक्ति ने आपका हाथ पकड़कर कहा है कि हिम्मत मत हारो, सब ठीक हो जाएगा। शायद यही कारण है कि दुनिया भर से लोग यहां आते हैं और हर बार लौटकर कहते हैं कि बाबा ने उनकी जिंदगी को किसी न किसी तरह छू लिया।