महराजगंज: जिले के सिसवा विकासखंड अंतर्गत ग्रामसभा बड़हरा महंथ में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर न सिर्फ आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इसका ऐतिहासिक महत्व भी बहुत गहरा है। यह मंदिर 239 साल पहले, वर्ष 1786 में स्थापित हुआ था और इसे ओडिशा के पुरी स्थित विश्वप्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर की एक शाखा के रूप में जाना जाता है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार इस मंदिर की देखरेख कर रहे महंत संकर्षण रामानुज दास ने बताया कि यहां हर साल पारंपरिक रूप से ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र, सुदर्शन और बहन सुभद्रा का विशेष सहस्त्रधारा स्नान कराया जाता है। इसके लिए 108 पात्रों में चंदन और कपूर मिश्रित जल का प्रयोग होता है, जिससे भीषण गर्मी से भगवान को राहत दी जाती है।
पंद्रह दिन का एकांतवास और औषधीय उपचार
परंपरा के अनुसार, इस स्नान के बाद भगवान को मौसमी बुखार हो जाता है, जिस कारण से उन्हें 15 दिनों के लिए एकांतवास में रखा जाता है। इस दौरान मंदिर का मुख्य द्वार बंद रहता है और भगवान को अनबसर घर में स्थापित कर, विशेष देखभाल की जाती है। भगवान को इस दौरान जायफल, तुलसी, औषधियों से बना काढ़ा, मौसमी फल और दलिया का भोग अर्पित किया जाता है। साथ ही उनके स्वास्थ्य लाभ के लिए जड़ी-बूटियों का भी प्रयोग किया जाता है।
रथयात्रा और छप्पन भोग
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान के स्वस्थ होने के बाद भव्य रथयात्रा का आयोजन होता है। लकड़ी से बने नंदीघोष रथ पर भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा के साथ विराजमान होते हैं। इसके पूर्व उन्हें 108 घड़ों के गुलाबजल मिश्रित जल से स्नान कराकर पूजा-अर्चना, छप्पन भोग, मंगल आरती आदि की जाती है और फिर भक्तों के लिए मंदिर का पट खोला जाता है।
इस ऐतिहासिक मंदिर की मान्यता और परंपराएं आज भी पुरी मंदिर जैसी श्रद्धा और उल्लास के साथ निभाई जाती हैं, जो इसे न सिर्फ महराजगंज बल्कि पूर्वांचल के लोगों के लिए भी एक आस्था का प्रमुख केंद्र बनाती हैं।