Mahoba: जिला उपकारागार महोबा में हत्या के आरोप में बंद एक कैदी ने शनिवार को आत्महत्या का प्रयास किया। 35 वर्षीय देवेंद्र पुत्र ठाकुर, निवासी समद नगर, ने जेल परिसर में लगे पेड़ से साफी के फंदे से लटककर आत्महत्या करने की कोशिश की। घटना के बाद जेल में अफरा-तफरी मच गई और बंदियों के साथ पुलिसकर्मियों ने मिलकर उसे तत्काल फंदे से नीचे उतारा।
तीन घंटे चला इलाज, फिर कानपुर किया गया रेफर
घायल अवस्था में देवेंद्र को पुलिस अभिरक्षा में जिला अस्पताल लाया गया, जहां ड्यूटी पर मौजूद डॉ. दीपक ने उसका प्राथमिक उपचार शुरू किया। करीब तीन घंटे तक चले इलाज के बावजूद उसकी हालत में कोई खास सुधार नहीं हुआ। चिकित्सकों ने उसे गंभीर हालत में कानपुर मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया।
जानकारी के मुताबिक, देवेंद्र 18 जुलाई 2023 से जेल में बंद है। उस पर अपनी पत्नी और बच्चों की हत्या का आरोप है। जेल प्रशासन का कहना है कि प्रारंभिक जांच में आत्महत्या के प्रयास की वजह अपराधबोध और आत्मग्लानि मानी जा रही है। यह मानसिक स्थिति हत्या जैसे गंभीर अपराध में संलिप्त बंदियों में आम पाई जाती है।
जेल प्रशासन के अनुसार, घटना के वक्त जेल परिसर में कई बंदी और सुरक्षाकर्मी मौजूद थे, लेकिन देवेंद्र ने कब और कैसे फांसी लगाने की कोशिश की, यह जांच का विषय है। वहीं, जिला अस्पताल स्टाफ पर स्थिति छुपाने के आरोप भी सामने आए हैं। अस्पताल के रजिस्टर में इस घटना को “हैंगिंग” के रूप में दर्ज किया गया है, लेकिन प्रारंभिक तौर पर जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई।
घटना के समय जेल परिसर में कई बंदी और पुलिसकर्मी मौजूद थे, इसके बावजूद यह हादसा होना सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। वहीं, जिला अस्पताल स्टाफ पर घटना छुपाने का आरोप भी सामने आया है। बताया जा रहा है कि शुरुआत में अस्पताल कर्मियों ने स्थिति को उजागर नहीं किया, हालांकि बाद में अस्पताल रजिस्टर में इसे “हैंगिंग” (फांसी) के रूप में दर्ज किया गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि गंभीर अपराधों में बंद कैदियों में मानसिक तनाव, अवसाद और अपराधबोध आम बात है। लेकिन जेलों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी होने के कारण ऐसे बंदियों को समय रहते परामर्श और सहायता नहीं मिल पाती। यह स्थिति आगे चलकर आत्महत्या जैसे प्रयासों को जन्म देती है।
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यह घटना न केवल जेल की सुरक्षा व्यवस्था, बल्कि बंदियों की मानसिक स्थिति की निगरानी व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करती है। जेलों में लंबे समय से मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज किया जा रहा है, जबकि ऐसे मामलों में समय पर मानसिक परामर्श और निगरानी से इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकता है।
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