Chandauli: आस्था, प्रेम और भाईचारे की मिसाल पेश करते हुए चकिया तहसील के सैदपुर निवासी नजमा बेगम और उनकी बेटी परवीन वारसी ने धर्म और मान्यताओं की सीमाओं को पार कर छठ पूजा की परंपरा को अपना जीवन का हिस्सा बना लिया है। मुस्लिम समाज से संबंध रखने वाली नजमा बेगम पिछले 25 वर्षों से पूरे विधि-विधान के साथ छठ महापर्व मनाती आ रही हैं।
डूबते सूर्य को अर्पित किया अर्घ्य
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, मंगलवार को छठ पर्व के तीसरे दिन जब सूर्य अस्त होने लगा, तो पीडीडीयू नगर तहसील के पास स्थित तालाब पर सैकड़ों व्रती महिलाओं के बीच नजमा बेगम और उनकी बेटी परवीन वारसी भी पहुंचीं। पारंपरिक परिधान में सजी दोनों मां-बेटी ने जल में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की।
तालाब पर इस दृश्य को देखकर वहां मौजूद लोगों ने उन्हें आस्था और एकता की जीवंत मिसाल बताया। हिंदू व्रतियों के साथ खड़ी यह मुस्लिम मां-बेटी समाज के लिए सांप्रदायिक सौहार्द का अद्भुत संदेश दे रही थीं।
पच्चीस सालों से रख रहीं छठ व्रत
नजमा बेगम ने बताया कि उनकी छठ पूजा की यात्रा एक कामना से शुरू हुई थी। उन्होंने कहा, “25 साल पहले मैंने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से छठ पूजा शुरू की थी। भगवान सूर्य ने मेरी मनोकामना पूरी की। इसके बाद मैंने यह व्रत अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। आज मेरी पांच बेटियां हैं और मैं हर साल उनके साथ मिलकर छठ करती हूं।”
उनकी बड़ी बेटी परवीन वारसी अब मां की इस परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। परवीन ने कहा, “हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। मैं नवरात्र, दीपावली, और होली जैसे हिंदू त्योहारों को भी पूरे श्रद्धा से मनाती हूं। मुझे लगता है कि धर्म का असली अर्थ प्रेम और एकता है, न कि भेदभाव।”
पूरी निष्ठा से मना रहीं पर्व
स्थानीय लोगों का कहना है कि नजमा बेगम और उनकी बेटी वर्षों से इस पर्व को पूरी निष्ठा से निभा रही हैं। हर साल वे प्रसाद तैयार करती हैं, खरना का व्रत रखती हैं और निर्जला उपवास कर अर्घ्य अर्पित करती हैं, ठीक वैसे ही जैसे हिंदू महिलाएं करती हैं।
चंदौली में नजमा बेगम और परवीन वारसी की यह कहानी आज समाज के लिए प्रेरणा बन चुकी है। यह न केवल लोक आस्था की शक्ति को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि धर्म से ऊपर इंसानियत और आपसी भाईचारा सबसे बड़ी पूजा है।

