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21 महीने तक बेवजह जेल में बंद रहे 2 व्यक्ति, अब कोर्ट ने कहा- आप बेकसूर हो

एक डेढ़ वर्षीय बच्चे के कथित अपहरण के मामले में जेल में बंद दो व्यक्तियों को आखिरकार 21 महीने बाद इंसाफ मिल गया। दोनों आरोपियों को बरी कर दिया।
Post Published By: Mayank Tawer
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21 महीने तक बेवजह जेल में बंद रहे 2 व्यक्ति, अब कोर्ट ने कहा- आप बेकसूर हो

Bulandshahr News: एक डेढ़ वर्षीय बच्चे के कथित अपहरण के मामले में जेल में बंद दो व्यक्तियों को आखिरकार 21 महीने बाद इंसाफ मिल गया। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे) चतुर्थ प्रमोद कुमार गुप्ता की अदालत ने साक्ष्य के अभाव और गवाहों के विरोधाभासी बयानों के आधार पर दोनों आरोपियों को बरी कर दिया।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, मामला सितंबर 2023 का है। जब जहांगीराबाद थाना क्षेत्र निवासी छत्तरपाल ने अपने बेटे तुषार के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। शिकायत में बताया गया कि रात करीब साढ़े आठ बजे तुषार घर के बाहर खेल रहा था, तभी तीन बाइक सवार युवक वहां पहुंचे। उनमें से दो युवक बाइक से उतरकर बच्चे को लेकर भागने लगे। मोहल्ले में शोर मचने पर दो युवकों को पकड़ लिया गया, जबकि तीसरा युवक मौके से फरार हो गया।

दोनों आरोपियों की पहचान

पकड़े गए आरोपियों की पहचान माछीपुर निवासी नानकचंद और घासमंडी निवासी दीपक के रूप में हुई। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए दोनों के खिलाफ अपहरण और एनडीपीएस एक्ट के तहत मामला दर्ज कर जेल भेज दिया।

21 महीने तक बेकसूर होने के बावजूद सजा काटी

करीब 21 महीनों तक न्याय की आस में जेल में दिन काटने के बाद यह मामला जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के संज्ञान में आया। इसके बाद अधिवक्ता आशु मिश्रा ने नानकचंद की ओर से केस की पैरवी की। अदालत में प्रस्तुत की गई एफआईआर, साक्ष्यों और गवाहों के बयानों में गंभीर विरोधाभास पाए गए। इन तथ्यों की समीक्षा के बाद अदालत ने दोनों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त करार दिया।

आरोपियों को दोषी नहीं ठहराया जा सका

नानकचंद की ओर से पेश किए गए तर्कों में कहा गया था कि वह पूरी तरह निर्दोष है और उसे झूठे आरोप में फंसाया गया। अदालत ने माना कि अभियोजन पक्ष ठोस और भरोसेमंद साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा, इसलिए आरोपियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

विधिक सेवा प्राधिकरण पहुंचा मामला

इस फैसले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि कैसे समाज के वंचित वर्ग के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण जैसी संस्थाएं न्याय तक पहुंच का सेतु बन सकती हैं। यह मामला ना सिर्फ कानून व्यवस्था की गहराई को उजागर करता है, बल्कि गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता की आवश्यकता और उपयोगिता को भी सामने लाता है।

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