महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं ने विवाह विच्छेद पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया

राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख रेखा शर्मा, महिला कार्यकर्ताओं और वकीलों ने उच्चतम न्यायालय के उस फैसले का स्वागत किया है, जिसमें शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी है कि वह जीवनसाथियों के बीच आई दरार भर नहीं पाने के आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत छह महीने की अनिवार्य अवधि के प्रावधान का इस्तेमाल किये बिना दोनों पक्षों को परस्पर सहमति के आधार पर तलाक की अनुमति दे सकता है।

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 1 May 2023, 8:41 PM IST

नई दिल्ली:  राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख रेखा शर्मा, महिला कार्यकर्ताओं और वकीलों ने उच्चतम न्यायालय के उस फैसले का स्वागत किया है, जिसमें शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी है कि वह जीवनसाथियों के बीच आई दरार भर नहीं पाने के आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत छह महीने की अनिवार्य अवधि के प्रावधान का इस्तेमाल किये बिना दोनों पक्षों को परस्पर सहमति के आधार पर तलाक की अनुमति दे सकता है।

रेखा शर्मा ने कहा कि इस निर्णय से महिलाओं को जिंदगी में आगे बढ़ने और अपने भविष्य के बारे में योजना बनाने का अवसर मिलेगा।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैं फैसले का स्वागत करती हूं। अगर आपसी सहमति से अलगाव होता है, तो महिलाओं को अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने और भविष्य के बारे में योजना बनाने का मौका मिलेगा।’’

महिला अधिकार कार्यकर्ता और ‘पीपुल्स अगेंस्ट रेप इन इंडिया’ (परी) की संस्थापक योगिता भयाना ने कहा कि यह प्रगतिशील फैसला है, लेकिन किसी वैवाहिक रिश्ते में आई दरार के भर नहीं पाने के आधार पर विवाह विच्छेद को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए था।

उन्होंने यह भी कहा कि गुजारा भत्ता कैसे दिया जाएगा, इसे भी स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए।

वकील प्रभा सहाय कौर ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश इस सिद्धांत पर आधारित हैं कि ऐसे किसी दंपति को शादी में बने रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिनके रिश्ते में दरार अब पाटने योग्य नहीं रह गई है।

उनके मुताबिक, शीर्ष अदालत ने संतुलित विचार रखा है।

महिला अधिकार कार्यकर्ता रंजना कुमारी ने कहा कि अब ऐसी शादियों में समय जाया करने का का कोई मतलब नहीं है, जो चलने लायक नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि फैसला प्रगतिशील है और महिला एवं पुरुष दोनों के लिए अच्छा है।

संविधान का अनुच्छेद 142 शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित किसी मामले में ‘संपूर्ण न्याय’ के लिए उसके आदेशों के क्रियान्वयन से संबंधित है। अनुच्छेद 142(एक) के तहत उच्चतम न्यायालय की ओर से पारित आदेश पूरे देश में लागू होता है।

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी आपसी सहमति से तलाक से संबंधित है और इस प्रावधान की उप-धारा (2) यह व्यवस्था करती है कि पहला प्रस्ताव पारित होने के बाद, पक्षकारों को दूसरे प्रस्ताव के साथ अदालत का रुख करना होगा, यदि तलाक संबंधी याचिका छह महीने के बाद और पहले प्रस्ताव के 18 महीने के भीतर वापस नहीं ली जाती है।

उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को व्यवस्था दी कि वह जीवनसाथियों के बीच आई दरार भर नहीं पाने के आधार पर किसी शादी को खत्म करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल कर सकता है और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत छह महीने की अनिवार्य अवधि के प्रावधान का इस्तेमाल किये बिना दोनों पक्षों को परस्पर सहमति के आधार पर तलाक की अनुमति दे सकता है।

 

Published : 
  • 1 May 2023, 8:41 PM IST

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