Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी के जमानत के अधिकार को लेकर की ये बड़ी टिप्पणी, जानिये क्या कहा

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी आरोपी को मुकदमा लंबित रहने के दौरान जमानत पाने का अधिकार है तो केवल सीमित अवधि के लिए यह राहत देना ‘अवैध’ है और इस तरह के आदेश स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 3 December 2023, 3:06 PM IST

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि जब कोई अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि किसी आरोपी को मुकदमा लंबित रहने के दौरान जमानत पाने का अधिकार है तो केवल सीमित अवधि के लिए यह राहत देना ‘अवैध’ है और इस तरह के आदेश स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

शीर्ष अदालत स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी तत्व (एनडीपीएस) अधिनियम, 1985 के तहत कथित अपराधों के लिए मुकदमे का सामना कर रहे एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

उसने कहा कि इस तरह के आदेशों से वादी पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है, क्योंकि उसे पहले दी गई राहत के विस्तार के लिए नई याचिका दायर करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने 29 नवंबर को पारित आदेश में कहा, ‘‘जब कोई अदालत कहती है कि आरोपी को मुकदमा लंबित रहते हुए जमानत का अधिकार है तो केवल सीमित अवधि के लिए ही जमानत देना अवैध है। इस तरह के आदेश संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।’’

व्यक्ति ने उड़ीसा उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश का अध्ययन करने से पता चलता है कि न्यायाधीश ने यह निष्कर्ष निकाला था कि अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा होने का अधिकार है।

पीठ ने कहा कि हालांकि, उसे 45 दिन के लिए अंतरिम जमानत दी गई।

उसने कहा, ‘‘संक्षिप्त में कहें तो उच्च न्यायालय की राय है कि सुनवाई समाप्त नहीं होने की संभावना के बीच लंबे समय तक कैद में रहने से जमानत दिये जाने का मामला बनता है।’’

Published : 
  • 3 December 2023, 3:06 PM IST

No related posts found.