नयी दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा कि कानूनी सहायता से इनकार करने से कमजोर लोगों के लिए अस्तित्व संबंधी चुनौती पैदा होती है, लेकिन सकारात्मक पहल और नीतियां कमजोर वर्गों के सामने आने वाली ऐसी समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकती हैं।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार धनखड़ ने यह भी कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ (अल्पविकसित देशों) को अपने औपनिवेशिक अतीत की बेड़ियों को त्याग देना चाहिए और उन ऐतिहासिक गलतियों को पलटने के लिए मिलकर प्रयास करना चाहिए, जिनकी वजह से अन्याय और असमानता कायम है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत के उदाहरण का अनुसरण करने और उस पर अमल का वक्त आ गया है… हमारा देश उस प्रक्रिया में शामिल है और वैसे मसौदा कानून संसद के विचाराधीन हैं जो हमारे दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव लाएंगे और प्रक्रिया (संहिता) और दंडशास्त्र में उन शोषणकारी प्रावधानों पर पूरी तरह से अंकुश लगाएंगे।'
उपराष्ट्रपति स्पष्ट रूप से उन तीन विधेयकों का जिक्र कर रहे थे जो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम का स्थान लेने वाले हैं।
धनखड़ ने ‘कमजोर लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण कानूनी सहायता तक पहुंच सुनिश्चित करना: ग्लोबल साउथ में चुनौतियां और अवसर’ विषय पर पहले क्षेत्रीय सम्मेलन में कहा कि संसद ने कानूनी सुधार की यात्रा शुरू कर दी है।
मध्यस्थता को बढ़ावा देना, प्रगति में बाधा डालने वाले पुराने कानूनों को निरस्त करना और समसामयिक चुनौतियों का समाधान करने वाले नए कानून बनाना ऐसे कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं, जिनके लिए विधेयकों पर विचार किया जा रहा है और उन्हें पारित किया जा रहा है।
उन्होंने महसूस किया कि कानूनी सहायता और न्याय प्रणाली तक पहुंच मौलिक मानवीय मूल्यों के पोषण और विकास तथा समतापूर्ण समाज को बढ़ावा देने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
उन्होंने भारतीय संविधान की प्रस्तावना के वाक्यांश 'हम, भारत के लोग' का उल्लेख करते हुए कहा कि यह एक समावेशी दस्तावेज़ की भावना को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य पृष्ठभूमि, परिस्थितियों या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना प्रत्येक नागरिक के अधिकारों की रक्षा करना है।
उन्होंने कहा, 'मौलिक अधिकारों के लिए प्रत्येक व्यक्ति के सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के अधिकार से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 32 को बीआर आंबेडकर ने 'संविधान की आत्मा' के रूप में स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित किया था।'
उन्होंने यह भी कहा कि प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले वर्गों के लिए कानूनी सहायता की उपलब्धता और आसानी से न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए मिशन मोड में हैं।
उन्होंने याद दिलाया कि प्रधान न्यायाधीश ने पिछले एक साल में सकारात्मक नवोन्मेषी जन-केंद्रित कदमों की शृंखला शुरू की है, जो समाज के कमजोर वर्गों के लिए कानूनी सहायता और न्याय प्रणाली तक आसान पहुंच को बढ़ावा देने में परिवर्तन का वाहक (गेम चेंजर) साबित हुए हैं।
इस अवसर पर केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश भी मौजूद रहे।