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करवा चौथ के व्रत का महत्व और मान्यताएं

इस बार रविवार को करवा चौथ का व्रत है। यह व्रत शादीशुदा महिलाओं के लिये कई मायनों में सौभाग्यशाली माना जाता है। इस व्रत को लेकर कई मान्यतायें मौजूद है, पढ़िये क्यों मनाया जाता है करवा चौथ का व्रत..
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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करवा चौथ के व्रत का महत्व और मान्यताएं

नई दिल्ली: नवरात्रि और दशहरा समाप्ति के बाद अब सुहागिनों का त्योहार करवाचौथ रविवार 8 अक्टूबर को देशभर मे बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जायेगा। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक करवाचौथ का पर्व कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।

पति की लंबी आयु के लिए महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखती हैं। पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है। चंद्रमा के साथ-साथ भगवान शिव-पार्वती, श्रीगणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है। महिलाएं करवा चौथ के दिन शिव-पावर्ती और कार्तिकेय की पूजा-अर्चना करती हैं। इसके बाद वे शाम को छलनी से चंद्रमा और पति को देखते हुए पूजा करती हैं। 

करवा चौथ के व्रत के पीछे कई मान्यताएं हैं। एक आख्यान के मुताबिक माना जाता है कि करवा चौथ का व्रत करवा नाम की धोबिन के नाम पर पड़ा है। करवा इतनी बहादुर महिला थी कि उसने मगरमच्छ के मुंह से अपने पति की जान बचाई। उससे खुश होकर यमराज ने करवा को उसके पति की दीर्घायु होने का वरदान दिया। इसके साथ यह भी कहा कि जो स्त्री करवा चौथ का व्रत रखेगी, उसको सौभाग्यवती होने का वरदान मिलेगा। 

 

एक अन्य कहानी के मुताबिक यह पर्व महाभारत से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पांडव पुत्र अर्जुन के लिए नीलगिरी पर्वत पर जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई तरह की मुसीबतें आने लगती हैं। परेशान होकर द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। भगवान श्रीकृष्ण द्रौपदी को कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत कर सभी संकटों से मुक्ति का उपाय बताते हैं। इस व्रत को पूरे विधि-विधान से पूर्ण कर द्रौपदी को सभी संकटों से मुक्ति मिल जाती है। इसी कथा के आधार पर करवाचौथ का व्रत मनाया जाता है।

पौराणिक काल से मनाया जा रहा करवाचौथ का त्योहार आज भी सुहागिनें पूरी श्रद्धा के साथ मनाती हैं और पूरे-विधि विधान के साथ इस व्रत का उद्यापन कर अपने सुहाग की रक्षा का कर्तव्य निभाती हैं।

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