कामदेव को होली के दिन मिला था पुनर्जन्म

होली को मनाए जाने को लेकर कई किंवदंतियां हैं। एक मान्यता के अनुसार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन धरती पर प्रथम मानव मनु का जन्म हुआ था वहीं इसी दिन कामदेव को पुनर्जन्म मिला।

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 14 March 2017, 2:52 PM IST

नई दिल्ली:  रंगों का त्योहार होली हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्रेम और सद्भावना से जुड़े इस त्योहार में सभी धर्मो के लोग आपसी भेदभाव भुलाकर जश्न के रंग में रंग जाते हैं। होली को मनाए जाने को लेकर कई किंवदंतियां हैं। एक मान्यता के अनुसार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन धरती पर प्रथम मानव मनु का जन्म हुआ था वहीं इसी दिन कामदेव को पुनर्जन्म मिला। हिंदू माह के अनुसार होली के दिन से ही नए संवत की शुरुआत होती है।

विविधता में एकता भारतीय संस्कृति की पहचान है, इसलिए देश में होली को लेकर विभिन्न हिस्सों में भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं। उत्तर-पूर्व भारत में होलिकादहन को भगवान कृष्ण द्वारा राक्षसी पूतना के वध दिवस के रूप में जोड़कर, पूतना दहन के रूप में मनाया जाता है।

होली से जुड़ी सबसे प्रचलित मान्यता हिरण्यकश्यप और प्रभुभक्त प्रह्लाद से जुड़ी हुई है। अहंकारी राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से घोर शत्रुता रखता था। उसने अहंकार में आकर खुद को भगवान मानना शुरू कर दिया था और ऐलान किया कि राज्य में केवल उसकी पूजा की जाएगी।

वहीं हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परमभक्त था। पिता के लाख मना करने के बाद भी प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की कई बार कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु प्रह्लाद की हमेशा रक्षा करते। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को भगवान शिव से ऐसी चादर मिली थी, जो आग में नहीं जलती थी। होलिका चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह चादर उड़कर प्रह्लाद के शरीर पर आ गई, जिससे प्रह्लाद की जान बच गई और होलिका का अंत हो गया।

इसी वजह से हर साल होली के एक दिन पूर्व होलिकादहन के दिन होली जलाकर बुराई और दुर्भावना का अंत किया जाता है।

दक्षिण भारत में इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल कर भस्म किया था और उनकी राख को अपने शरीर पर मलकर नृत्य किया था। बाद में कामदेव की पत्नी रति के दुख से द्रवित होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर देवताओं ने रंगों की वर्षा की। इसी कारण होली की पूर्व संध्या पर दक्षिण भारत में अग्नि प्रज्जवलित कर उसमें गन्ना, आम की बौर और चंदन डाले जाते हैं।

यहां प्रज्ज्वलित अग्नि शिव द्वारा कामदेव का दहन, आम की बौर कामदेव के बाण, गन्ना कामदेव के धनुष और चंदन की आहुति कामदेव को आग से हुई जलन को शांत करने का प्रतीक है।

ब्रज क्षेत्र में होली त्योहार का विशेष महत्व है। फाल्गुन के महीने में रंगभरनी एकादशी से सभी मंदिरों में फाग उत्सव की शुरुआत हो जाती है, जो दौज तक चलती है। दौज को बलदेव (दाऊजी) में हुरंगा होता है। बरसाना, नंदगांव, जाव, बठैन, जतीपुरा, आन्यौर में भी होली खेली जाती है। यह ब्रज क्षेत्र का मुख्य त्योहार है।

बरसाना में लट्ठमार होली खेली जाती है। होली की शुरुआत फाल्गुन शुक्ल नवमी को बरसाना से होता है। वहां की लट्ठमार होली देश भर में प्रसिद्ध है।

पश्चिम बंगाल में होलिका दहन नहीं मनाया जाता। बंगाल को छोड़कर सभी जगह होलिका-दहन मनाने की परंपरा है। बंगाल में फाल्गुन पूर्णिमा पर 'कृष्ण-प्रतिमा का झूला' प्रचलित है लेकिन यह भारत के अधिकांश जगहों पर दिखाई नहीं पड़ता। इस त्योहार का समय अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। (आईएएनएस)

Published : 
  • 14 March 2017, 2:52 PM IST

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