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DN Exclusive: कब टूटेगी अरबों रुपये के अवैध नशीली दवाओं के कारोबार की असली चैन? कब कसेगा सफेदपोश संरक्षणदाता पर शिकंजा?

नेपाल और बिहार की सीमा पर स्थित पूर्वी उत्तर प्रदेश का महराजगंज जिला लंबे वक्त से दवा माफियाओं के चंगुल में है। हर साल अरबों रुपयों की जानलेवा अवैध नशीली दवाओं की खेप महराजगंज जिले से तस्करी कर विदेशों और देश के कई राज्यों में पहुंचायी जा रही है। डाइनामाइट न्यूज़ की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट:
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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DN Exclusive: कब टूटेगी अरबों रुपये के अवैध नशीली दवाओं के कारोबार की असली चैन? कब कसेगा सफेदपोश संरक्षणदाता पर शिकंजा?

महराजगंज: पिछले साल अगस्त महीने में जब 686 करोड़ रुपये की अवैध दवाओं के कारोबार का भंडाफोड़ हुआ तो सहसा किसी को विश्वास ही नहीं हुआ तराई के इस जिले को किस कदर दवा माफियाओं ने अपने चंगुल में ले लिया है। कुछ गिरफ्तारियों, एफआईआर के बाद सारा मामला लीप-पोत कर बराबर कर दिया जाता है। 

एक बार फिर यह मामला तब उछला जब रविवार को सिसवा में 25 लाख की अवैध नशीली दवाओं का जखीरा पकड़ा गया। एसपी की सख्ती की वजह से इन दवा माफियाओं के संरक्षणदाता की एक न चली और देखते ही देखते संगीन NDPS एक्ट में तीन लोगों की गिरफ्तारी कर ली गयी। मोटी थैली काम न आयी और एसपी ने डाइनामाइट न्यूज़ पर ऐलान किया कि अवैध काम में लिप्त गिरफ्तार लोगों पर गैंगेस्टर जैसी कड़ी कार्यवाही भी अमल में लायी जायेगी।

डाइनामाइट न्यूज़ के खोजी जांबाज रिपोर्टरों ने जब सारे मामले की तहकीकात की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। दवा माफियाओं के निशाने पर तराई का जिला महराजगंज है। यहां से हर साल अरबों रुपये की अवैध दवायें विदेशों तक पहुंचायी जा रही हैं। यही नहीं बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी यहां की नकली दवाईयां गैरकानूनी ढ़ंग से भेजी जा रही हैं। इनके लिए कई बार रेलगाड़ियों, तो कई बार ट्रांसपोर्ट और प्राइवेट वाहनों का सहारा लिया जा रहा है। 

ये दोनों धरपकड़ तो महज बानगी भर है और अब तक पुलिस के हत्थे छोटी मछलियां ही हाथ लग सकी हैं। इलाके में आम चर्चा है कि गैरकानूनी काम बेरोकटोक चल सके इसकी एवज में दवा माफियाओं से संगठित गिरोह की तरफ से कुछ रसूखदारों तक समय-समय पर मोटी थैली पहुंचायी जा रही है, इसका हिस्सा कई जगह बंट रहा है। 

हैरानी की बात यह है कि आखिर क्यों जांच एजेंसियां और खुफिया तंत्र पूरे नक्सेस को समाप्त कर पाने में नाकाम साबित हो रहा है। क्यों नहीं बड़ी मछलियों पर हाथ डाला जा रहा है। ये दवायें कहां बन रही है, क्यों नहीं इसका पता लगाया जा रहा है?

इससे भी बड़ी बात लोग एक-दूसरे से पूछ रहे हैं कि इन दवा माफियाओं को जिस बड़े सफेदपोश संरक्षणदाता का हाथ है, उस पर जांच एजेंसियां कब शिकंजा कसेंगी?

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