

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि कोई भी ई-कॉमर्स मंच बौद्धिक संपदा का उल्लंघन करने वालों के लिए शरणगाह नहीं बन सकता और जालसाजों के लिए रास्ता नहीं मुहैया करा सकता है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि कोई भी ई-कॉमर्स मंच बौद्धिक संपदा का उल्लंघन करने वालों के लिए शरणगाह नहीं बन सकता और जालसाजों के लिए रास्ता नहीं मुहैया करा सकता है।
इसके साथ ही न्यायालय ने कहा है कि ई-कॉमर्स मंचों के व्यावसायिक उद्यम होने से उनका लाभ पर केंद्रित होना स्वाभाविक है लेकिन उन्हें दूसरों के बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) की रक्षा करनी होगी।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने अपने एक हालिया आदेश में कहा, 'ई-कॉमर्स मंच उल्लंघन करने वालों के लिए शरणगाह नहीं बन सकते हैं। इंसान कोई देवदूत नहीं हैं। जहां भी आसानी से पैसा नजर आता है, वहां कभी-कभी जमीर सो जाता है।'
उन्होंने कहा, 'ई-कॉमर्स वेबसाइट वाणिज्यिक उद्यम हैं और स्वाभाविक रूप से लाभ पर उनका ध्यान होता है। इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है लेकिन अधिकतम रिटर्न सुनिश्चित करने के साथ ऐसी वेबसाइट को दूसरों के आईपीआर की भी रक्षा करनी होती है। अपने लाभ पर नजर होने से वे ऐसी व्यवस्था बनाते हैं जिसमें उल्लंघनकर्ताओं और जालसाजों को गड़बड़ी का मौका मिल जाता है। ऐसी किसी भी व्यवस्था को सख्त न्यायिक अस्वीकृति का सामना करना होगा।'
उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी खेल-परिधान ब्रांड प्यूमा एसई के एक मुकदमे के निपटान के दौरान की। इसमें आरोप लगाया गया था कि ई-कॉमर्स मंच इंडियामार्ट का इस्तेमाल विभिन्न विक्रेता अपने नकली सामान की बिक्री के लिए कर रहे थे।
इंडियामार्ट ने दलील दी थी कि वेबसाइट पर बिक्री के लिए उपलब्ध उत्पाद से संबंधित जानकारी का वह प्रवर्तक नहीं था। उसने कहा कि किसी जालसाज द्वारा डाली गई सूचना को संज्ञान में लाने पर वह उसे हटाने के लिए तैयार होगा।
न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि ऑनलाइन जगत में जालसाजी एक जानी-पहचानी बुराई है और ई-कॉमर्स मंचों को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि उल्लंघनकारी सामग्री उनकी वेबसाइट एवं मंच पर पोस्ट न की जाए।
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