आखिर क्यों ग्रेट निकोबार द्वीप के पूर्व लोकसेवकों ने लिखा एनसीएसटी को पत्र

डीएन ब्यूरो

ग्रेट निकोबार द्वीप में प्रस्तावित बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं और पर्यावरण पर उसके प्रभाव को लेकर 70 पूर्व नौकरशाहों के समूह ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: ग्रेट निकोबार द्वीप में प्रस्तावित बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं और पर्यावरण पर उसके प्रभाव को लेकर 70 पूर्व नौकरशाहों के समूह ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है।

एक खुले पत्र में उन्होंने परियोजना से न केवल पर्यावरण और पारिस्थितिक को होने वाले संभावित नुकसान पर चिंता जताई “बल्कि ग्रेट निकोबार द्वीप में रहने वाले दो आदिवासी समूहों को लेकर भी चिंता जाहिर की है”।

पूर्व लोकसेवकों ने कहा कि उन्होंने 27 जनवरी को ग्रेट निकोबार द्वीप में प्रस्तावित बंदरगाह और कंटेनर टर्मिनल पर भारत के राष्ट्रपति को एक खुला पत्र लिखा था जो इस द्वीप की अनूठी पारिस्थितिकी और संवेदनशील आदिवासी समूहों के आवास को नष्ट कर देगा।

पत्र में कहा गया, “लेकिन न तो हमारे पत्र, न ही अन्य व्यक्तियों और समूहों द्वारा पर्यावरण और वन मंजूरी में खामियों के बारे में लिखे गए कई पत्रों का भारत सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा कि वह परियोजना की फिर से पड़ताल करे।”

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, कंस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (सीसीडी) के बैनर तले लिखे पत्र में समूह ने एनसीएसटी के अध्यक्ष और सदस्यों को खुले पत्र में कहा कि हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने उठाए गए कुछ पर्यावरणीय मुद्दों पर करीब से गौर करने का आदेश दिया है।

पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले 70 लोगों में पूर्व स्वास्थ्य सचिव के. सुजाता राव और पूर्व कोयला सचिव चंद्रशेखर बालकृष्णन शामिल हैं।










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