बेटी की विदाई घर की दहलीज से होनी चाहिए या किसी आलीशान होटल से? पढ़ें क्या कहते है गोरखपुर के वरिष्ठ लोग

गोरखपुर में एक बार फिर एक पुरानी परंपरा को लेकर बहस छिड़ गई है। बेटी की विदाई घर की देहलीज से होनी चाहिए या किसी आलीशान होटल से? शादियों की भव्यता बढ़ी है, लेकिन परंपराएं खो रही हैं। बुजुर्गों की भावुक अपील है, “सजावट बदलिए, संस्कार नहीं।”

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 11 October 2025, 8:17 PM IST

Gorakhpur: भारतीय संस्कृति में बेटी की विदाई केवल एक रस्म नहीं, बल्कि गहरे भावनात्मक और आध्यात्मिक अर्थों से जुड़ी परंपरा है। लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध में यह परंपरा अब होटल, लॉन और रिसॉर्ट्स की कृत्रिम सजावटों में दम तोड़ती नजर आ रही है।

भावुक परंपरा अपना सांस्कृतिक वजन खो रही

आजकल की शादियां भव्य होती जा रही हैं। आलीशान बुफे, चमकदार डेकोरेशन, लग्जरी वेन्यू। लेकिन इन्हीं के बीच बेटी की विदाई जैसी भावुक परंपरा अपना सांस्कृतिक वजन खो रही है। अब बेटी होटल के पोर्च से विदा हो रही है, किसी अजनबी जमीन पर, जहां न वो जड़ें हैं और न भावनाएं।

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पहले विदाई घर की देहलीज से होती थी

गोरखपुर जनपद के खजनी क्षेत्र के रुदपुर गांव के 90 वर्षीय शिवसम्मत राम तिवारी भावुक होकर कहते हैं, "विदाई घर की देहलीज से होती थी तो लगता था लक्ष्मी अपने पीछे सौभाग्य छोड़कर जा रही है। अब ये सब होटलों में हो रहा है और घर सूना रह जाता है। बेटी की जगह तो घर है और उसकी विदाई भी वहीं से होनी चाहिए।" विदाई के वक्त बेटी जब चावल और सिक्के पीछे फेंकती है तो वह केवल रिवाज नहीं होता- वह संकेत होता है अन्न-धन की बहुलता का आशीर्वाद। लेकिन आज यह चावल और सिक्के किसी होटल की फर्श पर गिर रहे हैं, घर की देहलीज पर नहीं।

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क्या कहते है पंडित विजय राम तिवारी?

पंडित विजय राम तिवारी (पदोही बाबा) कहते हैं, "समय है अब संभलने का। शादी भव्य हो सकती है, लेकिन विदाई घर से ही होनी चाहिए। यह संस्कृति का हिस्सा है, परंपरा है-इसे मिटने न दें।" एक मां की पीड़ा भी इन भावनाओं को और गहरा कर देती है। उन्होंने कहा, "बेटी की विदाई होटल से हुई, लेकिन जब घर लौटी तो लगा जैसे कुछ अधूरा रह गया। घर की देहलीज सूनी लग रही थी।"

घर और परिवार को जोड़ती है परंपरा

सांस्कृतिक विशेषज्ञों का भी मानना है कि विदाई केवल एक रस्म नहीं, बल्कि पीढ़ियों की परंपरा है जो घर और परिवार को जोड़ती है। जब यह रस्म अनजानी जगहों पर निभाई जाती है तो उसकी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक जुड़ाव खत्म हो जाता है।

Location : 
  • Gorakhpur

Published : 
  • 11 October 2025, 8:17 PM IST