New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 12 नवंबर 2025 को गुरुग्राम पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा गिरफ्तार वकील विक्रम सिंह को तत्काल रिहा करने का आदेश सुनाया। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच में जस्टिस एन. वी. अंजारिया और जस्टिस विनोद चंद्रन शामिल थे। अदालत ने गिरफ्तारी के बाद पेश वकील की दलीलों को सुनने के बाद 10 हजार रुपये की जमानत बॉन्ड पर तत्काल रिहाई का निर्देश दिया।
गिरफ्तारी के पीछे का मामला
विक्रम सिंह जुलाई 2019 से दिल्ली बार काउंसिल के सदस्य हैं और फिलहाल फरीदाबाद जेल में बंद हैं। उनके खिलाफ याचिका में कहा गया कि पेशेवर जिम्मेदारियों के चलते उन्हें कई मुवक्किलों के आपराधिक मुकदमों में पेश होना पड़ा। याचिका में आरोप लगाया गया कि विक्रम सिंह को निशाना बनाया गया, जब उन्होंने कोर्ट में एक आवेदन दायर किया, जिसमें उनके मुवक्किल ज्योति प्रकाश उर्फ बाबा के खिलाफ एसटीएफ की हिरासत में हुए हमले का जिक्र था। इस हमले में उनके मुवक्किल का पैर टूट गया।
वरिष्ठ अधिवक्ता का बयान
गिरफ्तार वकील की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि आपराधिक कानूनों की प्रैक्टिस करने वाले किसी भी वकील के लिए अब यह स्पष्ट संदेश जाएगा कि पुलिस के ऐसे बलपूर्वक तरीकों का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि गिरफ्तार वकील कई गैंगस्टर्स के मामलों में पेश थे, लेकिन पुलिस के द्वारा किए गए यह जुल्म नाजायज और गैरकानूनी हैं।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
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सीजेआई गवई ने कहा कि याचिकाकर्ता एक वकील हैं और उनके कानूनी प्रक्रिया से बचने की संभावना नहीं है। अदालत ने सुनवाई के दौरान यह भी नोट किया कि गिरफ्तारी में एसटीएफ के अधिकारियों की भागीदारी रही। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का दावा है कि उन्हें बिना किसी गिरफ्तारी कारण बताए हिरासत में लिया गया। इसके अलावा, याचिका में अदालत से सभी आपराधिक मुकदमों को समाप्त करने की मांग की गई है, जिनमें हत्या और आर्म्स एक्ट के तहत दर्ज मामले शामिल हैं।

