महापरिनिर्वाण दिवस पर देश संविधान निर्माता आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करता है। 6 दिसंबर 1956 को बाबासाहेब का निधन हुआ था और तब से यह दिन उनकी शिक्षा, विचारों और संघर्षों को याद करने का प्रतीक बन गया है। उनके योगदान ने भारत की सामाजिक संरचना को नई दिशा दी।

डॉ. भीमराव आंबेडकर की पुण्यतिथि
New Delhi: हर साल 6 दिसंबर का दिन भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी दिन देश भारत रत्न डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर की पुण्यतिथि महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाता है। बाबासाहेब का जीवन भारतीय समाज को समानता, न्याय और संवैधानिक अधिकारों की दिशा में मार्गदर्शन देने वाला रहा है। संविधान निर्माता के रूप में पूरी दुनिया में पहचाने जाने वाले आंबेडकर का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ था। इस वर्ष देश उनका 70वां महापरिनिर्वाण दिवस मना रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट sci.gov.in के अनुसार, बाबासाहेब लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे। 1955 में उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई थी। 6 दिसंबर 1956 की रात दिल्ली स्थित उनके घर में सोते समय ही उनका शांतिपूर्वक निधन हो गया। उनके निधन की खबर ने देशभर को शोक में डुबो दिया। हर वर्ष इसी दिन देश उनके योगदान को याद करते हुए महापरिनिर्वाण दिवस मनाता है।
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डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। उनका बचपन संघर्षों से भरा था, फिर भी उन्होंने शिक्षा को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया। प्राथमिक शिक्षा सतारा (महाराष्ट्र) में पूरी की। माध्यमिक शिक्षा एलफिंस्टन हाई स्कूल, बॉम्बे से की है। 1912 में बीए और 1913 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लिए स्कॉलरशिप के बाद 1916 में दो बड़े शोध कार्य ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रशासन और वित्त (एमए थीसिस) और भारत में प्रांतीय वित्त का विकास (पीएचडी शोध) ने उन्हें विश्व स्तर पर सम्मान दिलाया।
1946 में डॉ. आंबेडकर संविधान सभा के सदस्य चुने गए। 15 अगस्त 1947 को वे स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बने। उन्हें संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। आंबेडकर ने भारत के संविधान के निर्माण में केंद्रित भूमिका निभाई। संविधान सभा के वरिष्ठ सदस्य महावीर त्यागी ने उन्हें “संविधान का मुख्य कलाकार” कहा था। पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भी उनकी निष्ठा, ईमानदारी और बीमारी के बावजूद किए गए काम की सराहना की थी।
1956 में सामाजिक समता के नए संघर्ष का नेतृत्व करते हुए उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया और हजारों लोगों को साथ दीक्षा दिलाई। कुछ ही महीनों बाद दिसंबर 1956 में, बाबासाहेब ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें 1990 में भारत रत्न, देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, प्रदान किया गया।
डॉ. बी. आर. आंबेडकर के विचारों और सिद्धांतों को देशभर में फैलाने के उद्देश्य से डॉ. आंबेडकर फाउंडेशन (DAF) की स्थापना 24 मार्च 1992 को की गई। यह एक स्वायत्त संस्था है जिसका काम सामाजिक न्याय, समानता और शिक्षा से जुड़े कार्यक्रमों को राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाना है।
युवा आज भी बाबासाहेब के विचारों को मार्गदर्शक मानते हैं। उनके नारे “शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो” ने समाज को जागरूकता, अधिकार और न्याय के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी। यह नारा आज भी सामाजिक परिवर्तन की दिशा में प्रेरणा का स्रोत है।
6 दिसंबर सिर्फ कोई तिथि नहीं, बल्कि वह दिन है जब करोड़ों लोग बाबासाहेब को याद कर सामाजिक समानता की शपथ लेते हैं। उनकी विचारधारा आज भी भारत के सामाजिक ढांचे की रीढ़ है। महापरिनिर्वाण दिवस पर देशभर में श्रद्धांजलि सभाएं, विचार गोष्ठियाँ और सामाजिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।