सुप्रीम कोर्ट ने 10 राज्यों को धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर नोटिस जारी किया और तीन हफ्तों में जवाब मांगा। जावेद मलिक ने कानून का समर्थन करते हुए याचिका दाखिल की। कोर्ट जनवरी में सभी याचिकाओं की अंतिम सुनवाई करेगी।

सुप्रीम कोर्ट का ईसी पर सख्त रुख
New Delhi: भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 16 दिसंबर 2025 को 10 राज्यों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने इन राज्यों से कहा है कि वे तीन हफ्तों के भीतर अपना जवाब दाखिल करें। यह नोटिस उन याचिकाओं पर आया है जिनमें इन कानूनों के खिलाफ रोक लगाने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा, कर्नाटक, झारखंड और राजस्थान को नोटिस भेजा है। इन राज्यों में ऐसे कानून लागू हैं जो कथित रूप से “अनैतिक धर्मांतरण” को रोकने के लिए बनाए गए हैं।
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याचिकाओं में कहा गया है कि वयस्क लोग स्वेच्छा से शादी करने या धर्म परिवर्तन करने के लिए निशाना बन सकते हैं। इन कानूनों का गलत इस्तेमाल अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न में हो रहा है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून इंटर-रिलीजन कपल्स को परेशान करने और व्यक्तिगत फैसलों में दखल देने का जरिया बन गया है।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि मामले की फाइनल हियरिंग जनवरी के तीसरे हफ्ते में की जाएगी। कोर्ट ने सभी राज्यों से निर्देश दिया कि वे तीन हफ्तों में अपना जवाब जमा करें। वर्तमान में, जावेद मलिक की याचिका भी इसी मामले के साथ सुनी जाएगी।
अखिल भारतीय पसमांदा मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष जावेद मलिक ने इन कानूनों का समर्थन करते हुए याचिका दाखिल की है। उनका कहना है कि ये कानून समाज में शांति बनाए रखने और जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए जरूरी हैं। मलिक चाहते हैं कि उन याचिकाओं को खारिज किया जाए जो इन कानूनों को चुनौती दे रही हैं।
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कानूनों को चुनौती देने वाले संगठन जैसे जमीयत उलेमा-ए-हिंद और सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस का कहना है कि इन कानूनों का गलत इस्तेमाल होने की संभावना है। उनका तर्क है कि इससे धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सभी याचिकाओं को एक साथ सुनने का आश्वासन दिया है। कोर्ट तीन हफ्तों में सभी राज्यों से जवाब मांगेगा और जनवरी में मामले की अंतिम सुनवाई करेगा। इससे यह स्पष्ट होगा कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों की वैधता पर क्या फैसला होगा।