Site icon Hindi Dynamite News

DN Exclusive: क्या बिहार में फिर से मजबूत होगी कांग्रेस? ‘वोटर अधिकार यात्रा’ से कितना बदलेगा सियासी गणित, जानें

बिहार में कांग्रेस एक बार फिर वापसी की कवायद में जुट गई है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की साझा 'वोटर अधिकार यात्रा' इसी रणनीति का हिस्सा है। लेकिन क्या यह यात्रा वाकई वोटों में तब्दील हो सकेगी? और क्या तेजस्वी यादव से हाथ मिलाना कांग्रेस के लिए ‘सियासी ऑक्सीजन’ का काम करेगा? आइए इस पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण करते हैं।
Post Published By: Poonam Rajput
Published:
DN Exclusive: क्या बिहार में फिर से मजबूत होगी कांग्रेस? ‘वोटर अधिकार यात्रा’ से कितना बदलेगा सियासी गणित, जानें

Bihar: बिहार की सियासी ज़मीन पर इन दिनों एक दिलचस्प दृश्य देखने को मिल रहा है। एक तरफ राजनीति की ‘नई उम्र’ तेजस्वी यादव, तो दूसरी ओर ‘पुरानी पार्टी’ कांग्रेस को फिर से ज़िंदा करने की कोशिश में जुटे राहुल गांधी, जो अब कुर्ता-पायजामा में नहीं, बल्कि बुलेट पर सवार, मखाना के खेत में खड़े और गले में गमछा डाले ‘देसी अवतार’ में दिख रहे हैं। ऐसे में यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस खुद को बिहार में स्थापित कर पाएगी?

देसी अंदाज, गहरी रणनीति

राहुल गांधी इस बार सिर्फ भाषण नहीं दे रहे, वे गांवों की धूल फांक रहे हैं। खेतों में उतर रहे हैं, मखाना के स्वाद पर चर्चा कर रहे हैं और युवाओं के साथ मोटरसाइकिल राइड पर निकल पड़ते हैं। यह राहुल की वो छवि है जिसे कांग्रेस लंबे समय से तराशने की कोशिश कर रही थी एक ज़मीनी नेता। कांग्रेस इस यात्रा को केवल इवेंट नहीं, बल्कि जातिगत और सामाजिक समीकरणों को समझकर डिज़ाइन की गई रणनीति मान रही है। इस यात्रा से दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक तीनों वर्गों को एक साथ साधने का प्रयास है ।

क्या बिहार में फिर से मजबूत होगी कांग्रेस?

कांग्रेस 1989 के बाद से बिहार की सत्ता से बाहर है। मंडल राजनीति और क्षेत्रीय दलों के उभार ने उसके जनाधार को धीरे-धीरे खत्म कर दिया। अब कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती सिर्फ चुनाव जीतना नहीं, बल्कि खुद को एक प्रासंगिक और भरोसेमंद विकल्प के रूप में दोबारा स्थापित करना है।

तेजस्वी के साथ गठजोड़: मजबूरी या समझदारी?

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस का गठबंधन नया नहीं है, लेकिन अबकी बार हालात बदले हैं। तेजस्वी यादव खुद को एक परिपक्व नेता के रूप में स्थापित कर चुके हैं, और युवा, मुस्लिम व पिछड़े वोटरों के बीच उनकी मजबूत पकड़ है। कांग्रेस जानती है कि अकेले चुनावी मैदान में उतरना आत्मघाती होगा, इसलिए तेजस्वी के साथ कदम मिलाना रणनीतिक दृष्टि से समझदारी है।

‘वोटर अधिकार यात्रा’ और देसी राजनीति

राहुल गांधी इस बार पूरी तरह ‘ग्राउंड मोड’ में हैं। गांव-देहात, खेत-खलिहान, स्थानीय बोलचाल और लुक में देसीपन का तड़का लगाकर वे जनता से सीधे जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं। यह शैली कांग्रेस को ‘एलीट पार्टी’ की छवि से निकालकर जमीनी दल के रूप में पेश कर सकती है अगर इसे निरंतरता मिले।

क्या यह सब वोटों में बदलेगा?

यह सबसे बड़ा सवाल है। बिहार की राजनीति जाति समीकरणों, गठबंधन की मजबूती, और स्थानीय उम्मीदवारों की स्वीकार्यता पर टिकी रहती है। कांग्रेस को चाहिए कि वह सिर्फ हाई-प्रोफाइल अभियान न चलाए, बल्कि बूथ स्तर पर संगठन को मज़बूत करे। वोटर अधिकार यात्रा अगर महज प्रतीक बनकर रह गई, तो इसका असर सीमित रहेगा। लेकिन यदि इसे संगठित चुनावी रणनीति के रूप में बढ़ाया गया, तो यह गठबंधन को फायदा पहुंचा सकता है।

राहुल गांधी की 16 दिन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ न सिर्फ़ एक राजनीतिक अभियान है, बल्कि कांग्रेस के लिए ‘पॉलिटिकल रिवाइवल एक्सपेरिमेंट’ भी बन गई है। प्रियंका गांधी भी इस यात्रा में जोश भरती नज़र आ रही हैं। लेकिन सवाल यह है क्या यह देसी अंदाज़ और नया सियासी स्टाइल कांग्रेस को बिहार की सत्ता के करीब ले जा पाएगा, जहां से वह 35 साल पहले बेदखल हो गई थी?

Exit mobile version