Site icon Hindi Dynamite News

Bihar Election 2025: सड़क बनाम रोज़गार, नई पीढ़ी का बदला एजेंडा, जानें क्या है चुनावी मैदान में नया मोड़

बिहार की युवा पीढ़ी अब जातीय समीकरण से आगे बढ़कर रोजगार और विकास को प्राथमिकता दे रही है। चुनावी मैदान में "सड़क बनाम रोज़गार" नया नैरेटिव बनता दिख रहा है, जो पारंपरिक राजनीति की दिशा बदल सकता है।
Post Published By: Tanya Chand
Published:
Bihar Election 2025: सड़क बनाम रोज़गार, नई पीढ़ी का बदला एजेंडा, जानें क्या है चुनावी मैदान में नया मोड़

Patna: बिहार चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, चुनावी माहौल में एक नई बहस तेज़ हो गई है क्या युवा वोटर जातीय समीकरण से हटकर अब विकास और रोज़गार की राजनीति तय करेंगे? राज्य में पहली बार “सड़क बनाम रोज़गार” का नैरेटिव चुनावी विमर्श को प्रभावित करता दिख रहा है।

सड़क बनाम रोज़गार: दो अलग प्राथमिकताएं

बिहार में 2005 के बाद से सड़क, बिजली और पुल-पुलिया विकास की राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा रहे हैं। नीतीश कुमार ने लंबे समय तक सड़क और कानून-व्यवस्था को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया। दूसरी ओर, रोज़गार का मुद्दा लगातार हाशिए पर रहा। लेकिन अब युवा वोटर, खासकर 18 से 35 वर्ष की आयु वर्ग, सवाल पूछ रहे हैं कि सड़क तो बन गई, नौकरी कब मिलेगी?

राहुल की यात्रा घुसपैठियों के लिए! बिहार चुनाव से पहले अमित शाह का सियासी वार, वोट चोरी को लेकर कही ये बात

आंकड़े क्या कहते हैं?

बिहार में युवाओं (18-35 वर्ष) की संख्या कुल मतदाताओं का लगभग 58% है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में बिहार की बेरोज़गारी दर 15% से ऊपर रही, जो राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी है। हर साल लगभग 12-13 लाख युवा बिहार से बाहर नौकरी की तलाश में पलायन करते हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि विकास की बुनियादी सुविधाओं के बाद भी रोजगार का संकट चुनावी मुद्दा बनने से बच नहीं सकता।

ग्राउंड की आवाज़

पटना यूनिवर्सिटी के छात्र रंजन कुमार कहते हैं हमारे लिए जाति का सवाल पीछे छूट रहा है। पढ़ाई-लिखाई करने के बाद अगर नौकरी नहीं मिलेगी, तो सड़क किस काम की? दरभंगा के किसान पुत्र सुमित झा का कहना है गांव में सड़क बनी है, बसें चलती हैं, लेकिन गांव के आधे लोग पंजाब और दिल्ली में दिहाड़ी पर हैं। यहां रोजगार होता तो कोई बाहर क्यों जाता?

सोर्स- इंटरनेट

जातीय समीकरण बनाम युवा सोच

बिहार की राजनीति हमेशा जातीय समीकरणों पर आधारित रही है यादव, कुर्मी, भूमिहार, दलित वोट बैंक चुनाव का निर्णायक पहलू होते रहे हैं। लेकिन पहली बार यह सवाल उठ रहा है कि युवा पीढ़ी किस हद तक जाति से आगे बढ़कर विकास पर वोट करेगी।

पॉलिटिकल एनालिस्ट डॉ. अजय कुमार बताते हैं 2015 तक जाति ही निर्णायक थी। लेकिन अब बिहार का युवा राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर सोचता है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में उसे पता है कि बाकी राज्यों में क्या हो रहा है। वह रोजगार और अवसर चाहता है।

चुनावी रणनीतियों में बदलाव

सत्तारूढ़ दल अब भी इंफ्रास्ट्रक्चर और कल्याण योजनाओं को उपलब्धि बताकर वोट मांग रहे हैं। विपक्षी दलों ने बेरोज़गारी और पलायन को मुख्य मुद्दा बनाना शुरू किया है। सोशल मीडिया पर नौकरी बनाम नाले की राजनीति और रोज़गार बनाम रोड जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे हैं। यह बदलाव साफ़ करता है कि युवा अब अपनी प्राथमिकताओं को सोशल प्लेटफॉर्म से लेकर वोटिंग बूथ तक ले जा रहे हैं।

बिहार चुनाव में सुभासपा की एंट्री: ओम प्रकाश राजभर ने किया इतनी सीटों पर दावेदारी का ऐलान, जानें किसके साथ लड़ेंगे चुनाव?

महिला और प्रवासी वोटर की भूमिका

बिहार में महिला मतदाता पुरुषों से अधिक वोट डालती हैं। शराबबंदी के बाद महिलाएं अपने वोट से सरकारें प्रभावित करती रही हैं। लेकिन अब युवा महिला मतदाता शिक्षा और नौकरी को लेकर मुखर हैं। वहीं, प्रवासी वोटर भले ही बिहार में मौजूद न हों, लेकिन उनका परिवार उनके फैसले से प्रभावित होता है। खाड़ी देशों या दिल्ली-मुंबई में रहने वाले युवाओं के फोन कॉल भी गांव की चुनावी चर्चा का हिस्सा हैं।

Exit mobile version