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‘मुझे न बचा सके… माँ गंगा को जरूर बचा लो’, हरिद्वार में साध्वी पद्मावती की भावुक अपील

हरिद्वार में साध्वी पद्मावती ने गंगा रक्षा आंदोलन को लेकर बड़ी बात कही। जानने के लिए पढ़ें डाइनामाइट न्यूज़ की ये रिपोर्ट
Post Published By: Tanya Chand
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‘मुझे न बचा सके… माँ गंगा को जरूर बचा लो’, हरिद्वार में साध्वी पद्मावती की भावुक अपील

हरिद्वार: उत्तराखंड हरिद्वार के कनखल क्षेत्र स्थित मातृसदन आश्रम एक बार फिर चर्चा में है। बता दें कि गंगा रक्षा आंदोलन की अग्रणी साध्वी बहन पद्मावती ने लोगों से भावुक अपील की कि “मुझे न बचा सके… माँ गंगा को जरूर बचा लो”। जो अब देशभर में एक चेतावनी बनकर गूंज रही है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार पद्मावती व्हीलचेयर पर बैठी हुई थी, लेकिन आत्मबल से परिपूर्ण यह तपस्विनी आज भी गंगा के लिए संघर्षरत हैं।

बता दें कि उन्होंने आगे कहा कि 1997 में स्वामी शिवानंद सरस्वती द्वारा स्थापित मातृसदन केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि गंगा संरक्षण का क्रांतिकेंद्र बन चुका है। यहां डॉक्टर, वकील, इंजीनियर जैसे लोग सांसारिक जीवन त्यागकर मातृगंगा की सेवा में जुटे हैं। आश्रम अब तक 66 से अधिक अनशन और सत्याग्रहों का गवाह बन चुका है, जिनमें स्वामी निगमानंद सरस्वती जैसे तपस्वियों ने बलिदान भी दिया।

स्वामी शिवानंद का आरोप
2019-20 में लंबे अनशन के दौरान प्रशासन द्वारा जबरन अनशन तुड़वाने के प्रयास में बहन पद्मावती की रीढ़ की हड्डी को गंभीर नुकसान पहुंचा, जिसके बाद से वे अपाहिज हो चुकी हैं। स्वामी शिवानंद का आरोप है कि यह प्रशासन और खनन माफिया की मिलीभगत का परिणाम है।

अधिवक्ता एवं संन्यासी ने कही बड़ी बात
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल खड़े करते हुए अधिवक्ता एवं संन्यासी सुधानंद ने कहा कि गंगा सिर्फ नदी नहीं, भारत की आध्यात्मिक पहचान है। अब इस आंदोलन को कुचला नहीं, सुना जाना चाहिए।

मातृसदन ने गंगा को संवैधानिक अधिकार देने, खनन माफिया पर सख्त नियंत्रण और पारदर्शी नीति की मांग की है। साथ ही जन-जागरण अभियान के जरिए देश को गंगा बचाने का आह्वान भी किया जा रहा है। अब सवाल है कि क्या तपस्विनी पद्मावती की पुकार सरकार तक पहुँचेगी? या फिर यह आवाज़ भी इतिहास की भीड़ में कहीं गुम हो जाएगी?

गंगा रक्षा आंदोलन क्या है?
गंगा रक्षा आंदोलन एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय और सामाजिक आंदोलन है, जिसका उद्देश्य गंगा नदी की अविरलता और निर्मलता को बनाए रखना है। यह आंदोलन 1980 के दशक की शुरुआत से ही सक्रिय है, जब गंगा नदी के जल संसाधनों के दोहन और प्रदूषण के कारण इसके अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया था।

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