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Pauri News: देश-विदेश से उमड़ा जनसैलाब, मुसोली गांव में गूंजा इगास भैला का जश्न

उत्तराखंड के पौड़ी जिले के मुसोली गांव में इगास भैला, जिसे गैड़ा कौथिग के नाम से भी जाना जाता है बड़ी धूम-धाम से मनाया गया। देश-विदेश से लोग अपनी परंपरा को बचाने और उत्सव में भाग लेने पहुंचे। उत्सव में भैला, रस्साकसी और देवपूजन शामिल हैं।
Post Published By: Asmita Patel
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Pauri News: देश-विदेश से उमड़ा जनसैलाब, मुसोली गांव में गूंजा इगास भैला का जश्न

Pauri: उत्तराखंड के पौड़ी जिले के मुसोली ग्राम पंचायत में शनिवार को इगास भैला धूमधाम से मनाया गया। इसे स्थानीय लोग गैड़ा कौथिग के नाम से भी जानते हैं। यह पर्व स्थानीय परंपरा और संस्कृति का प्रतीक है, जिसे पीढ़ियों से गांव वाले संजोकर रख रहे हैं।

देश-विदेश से पहुंचे लोग

इगास भैला परंपरा को मनाने के लिए मुसोली गांव में देश-विदेश से लोग पहुंचे। गांव के लोग सुबह से ही तैयारियों में जुट गए। देवता का आह्वान कर, जंगल से बबला (घास) काटकर उसे पानी में धोकर रस्सी बनाई जाती है। रस्सी बोटी में कई पीढ़ियों के लोग भाग लेते हैं।

गैड़ा का निर्माण और पंचायती देवता के थान में स्थापना

बनाई गई रस्सी से गैड़ा तैयार किया जाता है। इसके बाद इसे गांव के पंचायती देवता के थान में ले जाया जाता है। यहां यह परंपरा पूरे विधिवत तरीके से निभाई जाती है। यह सिर्फ धार्मिक क्रिया नहीं बल्कि गांव के लोगों के लिए सांस्कृतिक पहचान और सामूहिक सहयोग का प्रतीक है।

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शाम को जलाया जाता है भैला

सांय होते ही गैड़ा यानी लकड़ियों से बना भैला जला दिया जाता है। यह रोशनी दीपावली की तरह गांव में फैलती है और लोगों में उत्साह का वातावरण बनाता है। इस प्रक्रिया को देखकर गांव के लोग परंपरा की महत्ता और उत्सव का आनंद महसूस करते हैं।

रस्साकसी और सामूहिक खुशी

भैला जलाने के बाद गांव में रस्साकसी का आयोजन किया जाता है। यह खेल गांव वालों के बीच आपसी सहयोग और भाईचारे का प्रतीक है। लोग हंसी-खुशी के साथ गैड़ा को संभालते हैं और अपने उत्साह को साझा करते हैं।

देवपूजन और रोट प्रसाद

रस्साकसी के बाद देवपूजन किया जाता है। पूजा के बाद रोट प्रसाद काटा जाता है और इसका एक टुकड़ा घर में रखा जाता है। माना जाता है कि इससे घर में कोई बला नहीं आती। यह प्रथा पीढ़ियों से चली आ रही है और हर साल उत्सव का मुख्य आकर्षण रहती है।

इगास भैला के अलग-अलग रूप

उत्तराखंड में दीपावली को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। बड़े क्षेत्र में इसे बड़ी दीपावली कहते हैं, वहीं पौड़ी जिले में इसे छोटी बग्वाल या कण्सी बग्वाल के रूप में जाना जाता है। हर क्षेत्र में इसका तरीका अलग होता है, लेकिन उद्देश्य समान हैपरंपरा को जीवित रखना।

मुसोली गांव में इगास भैला

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स्थानीय निवासी उत्सव में शामिल

कुलदीप रौथाण, लक्ष्मण सिंह कठैत और गजपाल सिंह भंडारी जैसे स्थानीय निवासी इस परंपरा के मुख्य आयोजक रहे। उन्होंने बताया कि ईगास भैला सिर्फ धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का तरीका है।

ग्रामीण जीवन में परंपरा का महत्व

मुसोली गांव में ईगास भैला की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। हर साल इसके लिए लोग बड़ी तत्परता से तैयारी करते हैं। यह सिर्फ उत्सव नहीं बल्कि ग्रामीण जीवन, सहयोग और संस्कृति की अभिव्यक्ति भी है।

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