केदारपुरी में 2013 की आपदा से आए विशाल बोल्डरों को अब कला का रूप दिया जा रहा है। इन पत्थरों पर देवी-देवताओं, गौ माता, पंच पांडव और पशु-पक्षियों की सुंदर आकृतियां उकेरी गई हैं, जो धाम की भव्यता और आध्यात्मिक आकर्षण को और बढ़ा रही हैं।

आपदा के निशान बने आस्था और कला की पहचान
Kedarpuri: केदारनाथ धाम में वर्ष 2013 की विनाशकारी आपदा आज भी लोगों की स्मृतियों में ताजा है। उस त्रासदी ने जहां अपार जन-धन की क्षति पहुंचाई, वहीं प्रकृति अपने साथ बड़े-बड़े विशालकाय बोल्डर भी लेकर आई। कभी विनाश के प्रतीक रहे यही पत्थर आज केदारपुरी की सुंदरता और आध्यात्मिक आभा को नया आयाम दे रहे हैं।
वर्ष 2013 में चौराबाड़ी ग्लेशियर से आई आपदा के दौरान भारी मात्रा में मलबा और विशाल बोल्डर केदारपुरी क्षेत्र में आ गए थे। शुरुआती समय में इन्हें आपदा की भयावह यादों के रूप में देखा जाता था, लेकिन अब इन्हीं पत्थरों का उपयोग धार्मिक और सांस्कृतिक कलाकृतियों के निर्माण में किया जा रहा है। इससे न सिर्फ क्षेत्र का सौंदर्य बढ़ा है, बल्कि आपदा की पीड़ा को भी सकारात्मक संदेश में बदला गया है।
केदारपुरी में इन विशाल बोल्डरों पर मंदिरों की आकृतियां, गौ माता, भगवान गणेश, भगवान शिव, विष्णु, माता लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती और कार्तिकेय की कलात्मक तस्वीरें उकेरी गई हैं। हर प्रतिमा में देवी-देवताओं के विभिन्न आसनों और भावों को बारीकी से दर्शाया गया है, जो श्रद्धालुओं को सहज ही आकर्षित करता है।
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इन कलाकृतियों में महाभारत के पंच पांडवों को भी विशेष स्थान दिया गया है। इसके अलावा ऋषि-मुनियों की तपस्या करते हुए आकृतियां भी पत्थरों पर उकेरी गई हैं। ये चित्र न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और पौराणिक परंपराओं की जीवंत झलक भी प्रस्तुत करते हैं।
देवी-देवताओं के साथ-साथ पशु-पक्षियों को भी बेहद सुंदर और जीवंत रूप में उकेरा गया है। पत्थरों पर बनी ये आकृतियां प्रकृति और मानव के सह-अस्तित्व का संदेश देती हैं। गौ माता की छवियां विशेष रूप से श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
आपदा की तस्वीर (सोर्स- गूगल)
इन कलाकृतियों के कारण केदारपुरी की भव्यता और आध्यात्मिक वातावरण और भी निखर कर सामने आया है। श्रद्धालु जब धाम में पहुंचते हैं, तो इन विशाल पत्थरों पर बनी कलाओं को देखकर न केवल आश्चर्यचकित होते हैं, बल्कि भावनात्मक रूप से भी जुड़ाव महसूस करते हैं।
इन बोल्डरों पर की गई नक्काशी में स्थानीय कलाकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। कलाकारों का कहना है कि उनका उद्देश्य आपदा की पीड़ा को भुलाकर आस्था, संस्कृति और सकारात्मकता का संदेश देना है। पत्थरों को इस रूप में ढालना आसान नहीं था, लेकिन निरंतर मेहनत और श्रद्धा से यह संभव हो पाया।
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केदारपुरी में आपदा के अवशेषों को कला में बदलना इस बात का प्रतीक है कि विनाश के बाद भी सृजन संभव है। ये कलाकृतियां न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि प्रकृति द्वारा लाई गई चुनौती को मानव अपनी रचनात्मकता से अवसर में बदल सकता है।