नैनीताल के घोड़ाखाल क्षेत्र में स्थित गोल्ज्यू देवता का मंदिर न्याय का प्रतीक है। श्रद्धालु अपनी पीड़ा और मनोकामनाएं कागज पर लिखकर मंदिर में टांगते हैं। लोकविश्वास और लोककथाओं के कारण यह मंदिर कुमाऊं में आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है।

पहाड़ों में न्याय मांगने वालों की आखिरी आस (Img- Internet)
Nainital: उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है और इसका कारण सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य नहीं, बल्कि यहां की गहरी आस्था और लोकविश्वास हैं। हिमालय की गोद में बसा यह पावन प्रदेश मंदिरों, घाटियों और पहाड़ों की कहानियों से भरा है। नैनीताल जिले के घोड़ाखाल क्षेत्र में स्थित गोल्ज्यू देवता का मंदिर न्याय का प्रतीक माना जाता है।
भवाली से करीब पांच किलोमीटर दूर पहाड़ी पर बसे इस मंदिर का माहौल श्रद्धालुओं के लिए सुकून देने वाला है। चारों ओर फैली हरियाली, ठंडी हवा और टंगी घंटियों की आवाज हर आगंतुक को भीतर तक छू जाती है। लोग अपनी परेशानियों और मनोकामनाओं के साथ यहां आते हैं और विश्वास के साथ लौटते हैं कि उनकी बात सुनी जाएगी।
गोल्ज्यू देवता को कुमाऊं में न्याय का देवता माना जाता है। स्थानीय मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से अपनी पीड़ा या मनोकामना एक कागज पर लिखकर मंदिर में टांगता है, उसे न्याय अवश्य मिलता है। ये कागज श्रद्धालुओं की उम्मीद और आस्था का प्रतीक हैं, न कि किसी औपचारिक प्रक्रिया का हिस्सा।
यह परंपरा गोल्ज्यू मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग बनाती है। श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं, शिकायतों और समस्याओं को कागज पर लिखकर मंदिर परिसर में टांगते हैं। ये चिट्ठियां कभी-कभी परिवार, जमीन या अन्य सामाजिक न्याय की समस्याओं से जुड़ी होती हैं। लोग मानते हैं कि देवता उनकी पीड़ा को समझते हैं और उन्हें न्याय दिलाते हैं।
घोड़ाखाल के गोल्ज्यू देवता (Img- Internet)
मंदिर से जुड़ी एक लोककथा इस आस्था को और मजबूत करती है। कहा जाता है कि वर्षों पहले महरागांव की एक महिला अपने ससुराल में अत्याचार झेल रही थी। उसे न्याय नहीं मिला, तो वह चंपावत के गोल्ज्यू देवता के दरबार पहुंची और न्याय की गुहार लगाई। लोकविश्वास के अनुसार देवता उसकी पीड़ा से द्रवित होकर घोड़ाखाल आ गए। तब से यह स्थल न्याय के देवता का स्थायी निवास माना जाता है।
आज भी श्रद्धालु गांवों और शहरों से यहां आते हैं। मंदिर के आसपास की हरियाली और पहाड़ी नजारे लोगों को मानसिक शांति देते हैं। स्थानीय लोग इसे न्याय और आस्था का केंद्र मानते हैं। श्रद्धालु यहां न केवल मनोकामना पूरी होने की उम्मीद लेकर आते हैं, बल्कि देवी-देवताओं के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा भी व्यक्त करते हैं।
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घोड़ाखाल का गोल्ज्यू मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं, बल्कि लोगों के दुख, भरोसे और उम्मीदों का प्रतीक है। यह मंदिर बताता है कि उत्तराखंड की पहाड़ों में न केवल प्राकृतिक सुंदरता है, बल्कि आस्था और विश्वास भी गहरे जड़ें जमा चुके हैं। यहाँ हर कागज की चिट्ठी, हर घंटी की आवाज, श्रद्धालुओं की उम्मीद और विश्वास की गवाही देती है।