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78 साल बाद भी प्यासा फतेहपुर का बरौरा गांव, दूषित पानी और जलभराव से परेशान ग्रामीण

जिले का बरौरा ग्राम पंचायत आज़ादी के 78 साल बाद भी पेयजल और जलनिकासी जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। गांव के लोग दूषित पानी और लगातार जलभराव से जूझ रहे हैं, जिससे फसलें नष्ट हो रही हैं और बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।
Post Published By: Asmita Patel
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78 साल बाद भी प्यासा फतेहपुर का बरौरा गांव, दूषित पानी और जलभराव से परेशान ग्रामीण

Fatehpur: आज़ादी के 78 साल बाद भी जहां देश भर में विकास और आधुनिक सुविधाओं की पहुंच बढ़ रही है, वहीं फतेहपुर जिले का बरौरा ग्राम पंचायत इन मूलभूत सुविधाओं से दूर है। बरौरा, चंदेनी और जैनपुर गांवों के लोग आज भी पीने के साफ पानी की तलाश में डेढ़ से दो किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। इन गांवों में हैंडपंप और पुराने कुएं मौजूद जरूर हैं, लेकिन उनका पानी खारा, दूषित और फ्लोराइड से भरा हुआ है।

बच्चों और महिलाओं पर सबसे ज्यादा असर

ग्रामीणों का कहना है कि पानी की खराब गुणवत्ता का सबसे ज्यादा असर बच्चों और महिलाओं पर पड़ रहा है। महिलाएं रोजाना कई बार डेढ़ किलोमीटर दूर जाकर पानी ढोती हैं, जिससे उनकी सेहत पर असर होता है। स्कूल जाने वाले बच्चे भी भारी मटके लेकर लौटते हैं। चंदेनी के चंद्रभूषण सिंह बताते हैं कि कुओं और नलों से आने वाला पानी खारा और गंदा है। कई बार अधिकारियों को बताया, लेकिन कोई सुनता ही नहीं। महिलाएं रोजाना कई किलोमीटर पैदल पानी लाती हैं।

जलभराव ने बिगाड़ा किसानों का हाल

बरौरा गांव के पूर्व प्रधान सुरेश सिंह ने बताया कि गांव का इलाका निचले हिस्से में होने के कारण हर साल बारिश के बाद खेतों में पानी भर जाता है। इस बार भी बारिश खत्म हुए कई हफ्ते हो चुके हैं लेकिन खेतों में अभी तक पानी भरा है। धान की फसल लगातार जलभराव में सड़ रही है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। जलभराव के कारण आलू व गेहूं की बुवाई भी बाधित है। सुरेश सिंह के मुताबिक, “तालाब और नहरें ऊंची हैं, इसलिए पानी की निकासी संभव नहीं हो पाती। प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।”

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पानी की टंकी और बोरिंग परियोजना कागजों में अटकी

महेंद्र सिंह, निवासी बरौरा, बताते हैं कि दो साल पहले जल निगम ने गांव में पानी की टंकी और पाइपलाइन बिछाने का काम शुरू किया था। बोरिंग की गई लेकिन पानी की जांच में फ्लोराइड की मात्रा अत्यधिक पाई गई। इसके बाद परियोजना रोक दी गई और तब से आज तक काम बंद पड़ा है। महेंद्र का कहना है कि हम आज भी साफ पानी के लिए डेढ़-दो किलोमीटर दूर जाते हैं। सरकार ने 45 लाख रुपये मानसरोवर योजना के तहत स्वीकृत किए थे, लेकिन वह पैसा कहां गया, इसका किसी को नहीं पता।

अधिकारियों की उदासीनता से टूटा भरोसा

पूर्व जल निगम जीएम अश्वनी शर्मा ने बताया कि परियोजना के तहत खुदाई शुरू हुई थी, लेकिन पानी की अशुद्धता के बाद काम रोकना पड़ा। उनका बाद में तबादला हो गया, और आगे की स्थिति उन्हें पता नहीं। संवाद करने पर वर्तमान डीजीएम गौरव सिंह न तो फोन पर उपलब्ध हुए, न ही कार्यालय में मिले। इससे ग्रामीणों की नाराजगी और बढ़ गई है। ग्रामीणों का कहना है कि अधिकारियों की उदासीनता और योजनाओं के अधर में लटके रहने से उनकी जिंदगी ठहर-सी गई है।

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बुनियादी जरूरतों से हारा गांव

बरौरा, चंदेनी और जैनपुर गांवों में हालात इतने गंभीर हैं कि कई घरों में साफ पानी का न मिलना बीमारी का कारण बन रहा है। पशुओं के लिए भी पानी की उपलब्धता एक चुनौती है। जलभराव के कारण खेत लंबे समय तक अनुपयोगी पड़े रहते हैं, जिससे न सिर्फ किसान बल्कि पूरा गांव आर्थिक संकट में फंस जाता है।

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