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Deoria News: देवरिया मेडिकल कॉलेज में इलाज या तमाशा? डॉक्टर नदारद, दलाल सक्रिय

उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में अचानक उस समय अफरा तफरी मच गई, जब डाइनामाइट न्यूज़ की टीम कॉलेज पहुंची। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
Post Published By: Poonam Rajput
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Deoria News: देवरिया मेडिकल कॉलेज में इलाज या तमाशा? डॉक्टर नदारद, दलाल सक्रिय

देवरिया: उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में अचानक उस समय अफरा तफरी मच गई, जब डाइनामाइट न्यूज़ की टीम कॉलेज पहुंची। जिसकी हालत ने सभी का दिमाग खराब कर दिया। बता दें कि, आज गुरुवार दोपहर 1 बजे डाइनामाइट न्यूज़ की टीम जब महर्षि देवरहा बाबा मेडिकल कॉलेज, देवरिया पहुंची, तो वहां का नजारा बेहद चिंताजनक था। हद चिंताजनक नजारा देखने को मिला। जहां इलाज की उम्मीद लिए मरीजों की भारी भीड़ जमा थी।

क्या है मामला?

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक,    मरीजों की लंबी कतारें सुबह से ही लगी थीं। कई मरीज गंभीर बीमारी से ग्रस्त होकर मेडिकल कॉलेज पहुंचे थे, लेकिन उन्हें कोई जिम्मेदार डॉक्टर देखने को नहीं मिला। इलाज के नाम पर जूनियर डॉक्टरों द्वारा औपचारिकता निभाई जा रही थी, जिससे मरीजों में गहरा आक्रोश देखा गया।

किसने उठाए सवाल?

प्राचार्य डॉ. राजेश बरनवाल और मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अनिल गुप्ता की निष्क्रियता को लेकर सवाल उठ रहे हैं। जूनियर डॉक्टरों पर पूरा इलाज छोड़ दिया गया है, जबकि प्राइवेट एम्बुलेंस चालक गेट के बाहर अपने नेटवर्क के जरिए मरीजों को गोरखपुर के निजी अस्पतालों तक ले जाने में लगे हैं।

क्यों बरती जा रही लापरवाही

जिम्मेदार डॉक्टरों की गैरमौजूदगी और प्रशासनिक उदासीनता के कारण मरीजों को पर्याप्त इलाज नहीं मिल पा रहा है। दलालों और निजी एम्बुलेंस चालकों का गिरोह सक्रिय है, जो मरीजों को भ्रमित कर मोटी रकम लेकर प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती करा रहा है। कई तीमारदारों ने बताया कि वे बार-बार इस मुद्दे को मीडिया और प्रशासन के सामने उठा चुके हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

कैसे हुआ मामले का खुलासा

दलाल एम्बुलेंस चालक मेडिकल कॉलेज के बाहर तैनात रहते हैं। वे तीमारदारों को डॉक्टरों की अनुपलब्धता का डर दिखाकर गोरखपुर के प्राइवेट अस्पतालों में रेफर कर देते हैं। इसके एवज में वे मोटी रकम वसूलते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। कई मरीजों और उनके परिजनों ने आरोप लगाया कि उन्हें मजबूरी में निजी अस्पताल जाना पड़ा, जिससे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ समय और जान का खतरा भी बढ़ गया। यह सवाल अब सबके सामने है: क्या सरकारी अस्पतालों में इलाज सिर्फ नाम भर का रह गया है? और क्या मरीजों की तकलीफों पर अब कोई सुनवाई होगी या सब यूं ही चलता रहेगा?

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