Sonbhadra: छठ महापर्व के तीसरे दिन रविवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा निभाने के लिए व्रतियों ने समर्पित भक्ति का परिचय दिया। चोपन और अन्य घाटों पर लगातार बारिश के बावजूद महिलाएं पानी में खड़े होकर भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करती रहीं।
संध्या अर्घ्य में पर्व का भव्य रूप
संध्या अर्घ्य के दौरान बांस की टोकरी में फल, फूल, ठेकुआ, चावल के लड्डू, गन्ना, मूली और कंदमूल जैसे प्रसाद सजाए गए। व्रती संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना के लिए 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं। बारिश के चलते कुछ लोग छठ घाट तक नहीं पहुँच पाए और सुरक्षित ठिकानों में रहकर पूजा अर्चना करते नजर आए। घाट पर नेटवर्क समस्या से भी व्रतियों को कुछ असुविधा हुई।
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धार्मिक मान्यता और अर्घ्य का महत्व
कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। मान्यता है कि सूर्यदेव इस समय अपनी दूसरी पत्नी प्रत्युषा के साथ होते हैं। उन्हें अर्घ्य देने से जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं, सौभाग्य बढ़ता है और बच्चों का जीवन सूर्य की तरह चमकता है। अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने से वंश वृद्धि होती है। मंगलवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही इस महापर्व का समापन होगा।
पर्व का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
छठ महापर्व जात-पात और अमीर-गरीब के भेद को मिटाकर सभी को समान मानता है। नगर और ग्रामीण इलाकों में यह पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। व्रतियों ने पारंपरिक प्रसाद जैसे ठेकुआ और लड्डू बनाए और उन्हें फल, दौरा और टोकरी में सजाया। NCL क्षेत्रों के तालाबों को छठ घाट का रूप देकर पूजा अर्चना की गई।
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घाटों पर भव्य माहौल और सुरक्षा
ओबरा तहसील के सोन, रेणुका, सिंदुरिया और खेरटिया घाटों पर विशेष भीड़ देखी गई। प्रशासनिक अधिकारी और पुलिसकर्मी सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए सतर्क रहे। भक्तिपूर्ण माहौल में भक्ति गीत गूंजते रहे और घरों से लेकर घाटों तक श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने पूरे क्षेत्र को छठमय बना दिया।

