New Delhi: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर हुआ है। पुणे जिले के पूर्व कांग्रेस जिलाध्यक्ष और पुरंदर के पूर्व विधायक संजय जगताप ने बुधवार को भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) का दामन थाम लिया। यह कदम राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक हलचल को बढ़ा रहा है।
सासवड़ में हुआ भाजपा का स्वागत
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, संजय जगताप ने भाजपा में शामिल होते हुए पुणे जिले के सासवड़ में महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण की उपस्थिति में पार्टी की सदस्यता ली। उनके साथ बड़ी संख्या में उनके समर्थक भी भाजपा में शामिल हुए। जगताप ने कहा कि यह फैसला उन्होंने अपने समर्थकों की सहमति से लिया है, ताकि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र की समस्याओं का समाधान बेहतर तरीके से कर सकें।
कांग्रेस ने किया तीखा विरोध
जगताप के भाजपा में शामिल होते ही कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने भाजपा पर हमला बोलते हुए उसे ‘चुड़ैल’ तक कह डाला, जो कांग्रेस से नेताओं को तोड़कर उन्हें टिकट और पद देती है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा अपनी ताकत बढ़ाने के बजाय, कांग्रेस के नेताओं को तोड़कर राजनीतिक लाभ ले रही है।
भा.ज.पा. की रणनीति या सत्ता की चाल?
राज्य में पहले भी कई कांग्रेस और एनसीपी नेताओं का भाजपा में शामिल होना चर्चा का विषय बना है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह भाजपा की सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है, जिसमें विपक्षी दलों के प्रभावशाली नेताओं को अपने पाले में लाकर चुनावी ताकत को मजबूत किया जा रहा है। संजय जगताप का भाजपा में आना भी इस रणनीति का ही हिस्सा माना जा रहा है।
कांग्रेस की विचारधारा की रक्षा
कांग्रेस ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि उनका दल विचारधारा पर आधारित है, और कुछ नेताओं के पार्टी छोड़ने से कांग्रेस की ताकत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हर्षवर्धन सपकाल ने यह भी कहा कि भाजपा के पास केंद्र और राज्य में करिश्माई नेतृत्व होने का दावा है, लेकिन असल में वह कांग्रेस के नेताओं को ही आगे बढ़ा रही है।
संजय जगताप का कदम कितना असरदार होगा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संजय जगताप का भाजपा में शामिल होना पुरंदर विधानसभा क्षेत्र के राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा उन्हें किस तरह की जिम्मेदारी देती है और कांग्रेस इस नुकसान की भरपाई किस रणनीति से करती है। आने वाले हफ्तों में इस सियासी घटनाक्रम का असर और स्पष्ट होगा। इस सियासी बदलाव के साथ महाराष्ट्र की राजनीति में नए अध्याय की शुरुआत हो रही है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि किस पार्टी को इससे कितना लाभ और नुकसान होता है।

