नई दिल्ली: भारत आज 28 मई को स्वतंत्रता सेनानी, विचारक, और राष्ट्रवादी नेता वीर विनायक दामोदर सावरकर की 142वीं जयंती मना रहा है। इस अवसर पर देशभर में श्रद्धांजलि सभाएं, संगोष्ठियां और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। वीर सावरकर के जीवन और उनके अतुलनीय योगदान को याद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, वीर सावरकर की जयंती पर थापर नगर के आर्य समाज मंदिर में विशेष सत्संग का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का संचालन मनीष शर्मा ने किया और वक्ता राजेश सेठी ने सावरकर के जीवन और विचारों पर प्रकाश डाला। इस दौरान आनंद वर्धन झा, करुणा सागर बाली, भानु बत्रा सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
प्रधानमंत्री मोदी ने दी श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि देते हुए लिखा, “भारत माता के सच्चे सपूत वीर सावरकर जी को उनकी जन्म जयंती पर आदरपूर्ण श्रद्धांजलि। उनका त्याग और समर्पण ‘विकसित भारत’ के निर्माण में पथ प्रदर्शक बना रहेगा।” उन्होंने सावरकर को ‘तेज़, त्याग, तप, तर्क और तलवार’ का प्रतीक बताया।
भारत माता के सच्चे सपूत वीर सावरकर जी को उनकी जन्म-जयंती पर आदरपूर्ण श्रद्धांजलि। विदेशी हुकूमत की कठोर से कठोर यातनाएं भी मातृभूमि के प्रति उनके समर्पण भाव को डिगा नहीं पाईं। आजादी के आंदोलन में उनके अदम्य साहस और संघर्ष की गाथा को कृतज्ञ राष्ट्र कभी भुला नहीं सकता। देश के लिए… pic.twitter.com/3OsxSN905I
— Narendra Modi (@narendramodi) May 28, 2025
राजनाथ सिंह-श्रद्धापूर्वक स्मरण एवं नमन करता हूँ
राजनाथ सिंह ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा की प्रखर क्रांतिकारी एवं विचारक स्वातंत्र्य वीर सावरकर की जयंती पर मैं उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण एवं नमन करता हूँ। उनका अदम्य साहस, राष्ट्र के प्रति समर्पण और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान प्रेरणादायी है। उनकी विचारशीलता और राष्ट्रनिष्ठा देशवासियों के लिए अनुकरणीय है।
प्रखर क्रांतिकारी एवं विचारक स्वातंत्र्य वीर सावरकर की जयंती पर मैं उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण एवं नमन करता हूँ। उनका अदम्य साहस, राष्ट्र के प्रति समर्पण और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान प्रेरणादायी है। उनकी विचारशीलता और राष्ट्रनिष्ठा देशवासियों के लिए अनुकरणीय है। pic.twitter.com/DhuDvTZg4I
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) May 28, 2025
अमित शाह ने वीर सावरकर का श्रद्धांजलि
अमित शाह ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर श्रद्धांजलि देते हुए लिखा की वीर सावरकर जी द्वारा रचित ‘अनादि मी… अनंत मी…’ गीत माँ भारती के प्रति अगाध प्रेम का प्रतीक और हर भारतीय की भावुक अभिव्यक्ति है।
वीर सावरकर जी द्वारा रचित ‘अनादि मी… अनंत मी…’ गीत माँ भारती के प्रति अगाध प्रेम का प्रतीक और हर भारतीय की भावुक अभिव्यक्ति है।
इस गीत का हिंदी भावांतरण करने वाली पूरी टीम को बधाई देता हूँ।
यह अमर गीत जरूर सुनें… pic.twitter.com/VVWBDS5Btq
— Amit Shah (@AmitShah) May 28, 2025
जानिए कहा हुआ वीर सावरकर का जन्म
वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर गांव में हुआ था। वे एक मराठी हिंदू चितपावन ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर और माता का नाम राधाबाई था। बचपन से ही उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना प्रबल थी। उन्होंने शिवाजी, महाराणा प्रताप और बाजीराव पेशवा जैसे महान योद्धाओं की कहानियों से प्रेरणा ली।
वीर सावरकर न केवल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, बल्कि एक प्रखर विचारक, लेखक और समाज सुधारक भी थे। उन्होंने जातिवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई और हिन्दू समाज में एकता लाने का प्रयास किया। उन्होंने ‘हिंदुत्व’ शब्द को परिभाषित किया और इसे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना से जोड़ा।
1905 में क्रांतिकारी संगठन की स्थापना
1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में उन्होंने अभिनव भारत नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित थे और विदेशी वस्त्रों की होली जलाने जैसे आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। 1857 की क्रांति को उन्होंने ‘भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ बताया और इस पर एक विस्तृत ग्रंथ भी लिखा, जो उनके विचारों की क्रांतिकारी सोच को दर्शाता है।
1909 में उन पर ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ साजिश रचने और हथियार सप्लाई करने के आरोप लगे। 1910 में उन्हें लंदन से गिरफ्तार किया गया और 1911 में अंडमान की कुख्यात सैल्युलर जेल भेज दिया गया। वहां उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गईं और दो आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई, जो कुल मिलाकर 50 वर्षों की कठोर सजा थी।
सामाजिक जागरूकता के कार्य
सावरकर ने जीवन के अंतिम वर्षों में सामाजिक जागरूकता के कार्यों में योगदान दिया। पत्नी यमुनाबाई की मृत्यु के बाद उन्होंने स्वैच्छिक आमरण अनशन का निर्णय लिया और भोजन, जल तथा दवाओं का त्याग कर दिया।