Kathmandu: नेपाल में सोशल मीडिया बैन को लेकर शुरू हुआ जनविरोध अब उग्र रूप ले चुका है। सोमवार से चल रहे युवाओं के प्रदर्शन ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। सड़कों पर आगजनी, तोड़फोड़ और पुलिस से झड़पों के बीच अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों घायल हुए हैं। इस जनविरोध ने न केवल सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि गठबंधन सरकार की स्थिरता पर भी संकट मंडरा रहा है।
सोमवार को सरकार द्वारा लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को प्रतिबंधित करने की घोषणा के बाद से राजधानी काठमांडू सहित पोखरा, बिराटनगर और अन्य प्रमुख शहरों में युवाओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। सरकार का दावा है कि यह बैन “अशांति फैलाने वाले कंटेंट” को रोकने के लिए है, लेकिन जनता इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला मान रही है।
अधिकारियों के घरों पर हमला
प्रदर्शन के दूसरे दिन मंगलवार को स्थिति और ज्यादा बेकाबू हो गई। प्रदर्शनकारियों ने गृह मंत्री रमेश लेखक और संचार मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग के घरों पर हमला कर दिया। तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं सामने आई हैं। इसी बीच गृह मंत्री रमेश लेखक ने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद इस्तीफों की एक श्रृंखला शुरू हो गई। मंगलवार को ही कृषि मंत्री रामनाथ अधिकारी ने भी इस्तीफा दिया। उन्होंने कहा, “प्रश्न पूछने वालों का दमन करना नैतिक रूप से गलत है। मैं इसका हिस्सा नहीं बन सकता।” इसके बाद खबर आई कि स्वास्थ्य मंत्री प्रदीप पौडेल ने भी इस्तीफे की पेशकश की है। उनका कहना था कि “ऐसे माहौल में सरकार में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है।”
गठबंधन सरकार पर संकट
सरकार में सबसे बड़ा सहयोगी दल नेपाली कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले सभी नेता इसी पार्टी से हैं। महासचिव गगन थापा ने भी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ने की घोषणा कर दी है। उन्होंने प्रदर्शनकारियों के समर्थन में बयान दिया और कहा कि “जनता की आवाज दबाना लोकतंत्र की हत्या है।” नेपाल की मौजूदा सरकार जुलाई 2024 से गठबंधन के रूप में चल रही है, जिसमें नेपाली कांग्रेस के पास 88 सीटें और CPN (UML) के पास 79 सीटें हैं। लगातार हो रहे इस्तीफों के कारण गठबंधन की स्थिरता पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है।
सोशल मीडिया बैन से भड़का गुस्सा
सरकार द्वारा टिकटॉक, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म्स को अनिश्चितकाल के लिए प्रतिबंधित करने की घोषणा के बाद, युवाओं में गुस्सा फूट पड़ा। सरकार ने दलील दी कि ये प्लेटफॉर्म “फेक न्यूज और समाज में अस्थिरता” फैला रहे हैं। लेकिन युवाओं का कहना है कि यह कदम जनसंचार और लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है। सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों के हाथों में “Restore our Voice”, “No Ban on Freedom” जैसे पोस्टर और तख्तियां थीं। काठमांडू विश्वविद्यालय के छात्रों ने विरोध मार्च में भाग लेते हुए कहा, “यह सिर्फ सोशल मीडिया का मुद्दा नहीं है, यह हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा का सवाल है।”
पुलिस की सख्ती
प्रदर्शन को रोकने के लिए सरकार ने कई इलाकों में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं। राजधानी के प्रमुख इलाकों में धारा 144 लागू कर दी गई है। पुलिस ने अब तक 300 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है, जबकि 500 से ज्यादा प्रदर्शनकारी घायल हुए हैं।

