2025 में सिल्वर सिर्फ ज्वेलरी मेटल नहीं रहा, बल्कि सोलर पैनल्स, EV बैटरी और इलेक्ट्रॉनिक्स में बढ़ती इंडस्ट्रियल डिमांड ने इसे ‘ग्रीन टेक मेटल’ बना दिया। भारत में यह रिकॉर्ड 2 लाख 40 हजार रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया। सप्लाई की कमी और बढ़ती मांग से प्राइस उच्च है।

चांदी की कीमत में बढ़ोत्तरी (Img: Google)
New Delhi: इस साल 2025 में सिल्वर की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। भारत में यह अब 2 लाख 40 हजार रुपये प्रति किलो के पार जा चुकी है। इसकी तेजी का मुख्य कारण सोलर पैनल्स और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV) से इंडस्ट्रियल डिमांड में उछाल है। गोल्ड की तुलना में बेहतर रिटर्न देने वाला सिल्वर अब ज्वेलरी से आगे ‘ग्रीन टेक मेटल’ बन चुका है। सप्लाई की कमी ने इसे और महंगा कर दिया है। भारत की रिन्यूएबल एनर्जी पॉलिसी और ग्लोबल क्लीन एनर्जी ट्रांजिशन से यह ट्रेंड 2030 तक जारी रहने की संभावना है।
सिल्वर का नया अवतार ज्वेलरी से इंडस्ट्रियल ग्रोथ मेटल तक फैल गया है। पहले यह मुख्य रूप से ज्वेलरी और इन्वेस्टमेंट के लिए जाना जाता था, लेकिन 2025 में इसका 50% से ज्यादा उपयोग इंडस्ट्रियल सेक्टर्स में हो रहा है। सिल्वर की बेहतरीन इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी इसे सोलर पैनल्स, EV बैटरी और इलेक्ट्रॉनिक्स में अनिवार्य बनाती है।
इस साल सिल्वर की कीमतें 91% से 108% तक उछलीं। भारत में यह 2 लाख 40 हजार रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई। गोल्ड की तुलना में बेहतर रिटर्न (गोल्ड 65-68%) ने इसे इन्वेस्टर्स की पहली पसंद बना दिया। सिल्वर इंस्टीट्यूट के अनुसार, इंडस्ट्रियल डिमांड 700 मिलियन औंस से ऊपर पहुंच गई है, जो रिन्यूएबल एनर्जी और टेक्नोलॉजी ग्रोथ से प्रेरित है।
हर सोलर पैनल में 15-25 ग्राम सिल्वर पेस्ट इस्तेमाल होता है। यह इलेक्ट्रिसिटी कंडक्ट करने के लिए जरूरी है। 2025 में सोलर डिमांड 261 मिलियन औंस तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत का 500 GW रिन्यूएबल टारगेट (2030 तक) सोलर पर फोकस्ड है, जिससे सिल्वर की लोकल डिमांड बढ़ रही है। चीन और भारत ग्लोबल सोलर इंस्टॉलेशन में लीड कर रहे हैं।
हर EV में 25-50 ग्राम सिल्वर बैटरी, वायरिंग और पावर इलेक्ट्रॉनिक्स में इस्तेमाल होता है, जो सामान्य कारों की तुलना में 50-70% ज्यादा है। 2025 में EV सेक्टर से सिल्वर की डिमांड 90 मिलियन औंस से ऊपर रही। भारत में EV सेल्स 50% YoY बढ़ रही हैं, जो सिल्वर कंजम्प्शन को बूस्ट कर रही हैं।
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2025 में सप्लाई डेफिसिट 149 मिलियन औंस तक पहुंच गया, जो कि पांचवां लगातार साल रहा। माइन प्रोडक्शन लगभग 820 मिलियन औंस है। भारत अपने सिल्वर का 80% इंपोर्ट करता है, जिससे रुपी वीकनेस और ग्लोबल प्राइस का असर बढ़ता है। रिसाइक्लिंग की कोशिशें बढ़ रही हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं हैं। ETF और फंड्स में बढ़ता इनफ्लो प्राइस को सपोर्ट कर रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार 2026 में सिल्वर $60+ प्रति औंस या भारत में 2.5 लाख रुपये प्रति किलो तक पहुंच सकता है। रिन्यूएबल टारगेट और EV पॉलिसी से लोकल माइनिंग और रिसाइक्लिंग में बिजनेस अवसर बढ़ेंगे। हालांकि हाई प्राइस से सब्स्टीट्यूशन (जैसे कॉपर) का खतरा है, लेकिन क्लीन एनर्जी ट्रांजिशन सिल्वर की मांग को मजबूत रखेगा। लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टर्स के लिए यह गोल्ड से बेहतर विकल्प बन सकता है।
2025 सिल्वर का ट्रांसफॉर्मेशन ईयर साबित हुआ, जहां इंडस्ट्रियल डिमांड ने इसे नया सोना बना दिया। भारत जैसे देशों में ग्रीन एनर्जी पुष से यह ट्रेंड और मजबूत होगा, लेकिन सप्लाई चैलेंजेस प्राइस को उच्च बनाए रखेंगी।