New Delhi: भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक विवाद गहराता जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप प्रशासन ने भारत से आयात होने वाले सामानों पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। यह नई दरें 27 अप्रैल से प्रभावी हो जाएंगी। इस घोषणा के बाद घरेलू शेयर बाजार में हड़कंप मच गया और निवेशकों का भरोसा डगमगा गया। हफ्ते के दूसरे कारोबारी दिन की शुरुआत में ही सेंसेक्स 600 अंक से ज्यादा टूट गया, जबकि निफ्टी 50 भी 24,800 के स्तर से नीचे फिसल गया।
स्टॉक्स में भारी बिकवाली
सबसे ज्यादा दबाव मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में देखने को मिला। मेटल, बैंकिंग और रियल्टी सेक्टर के स्टॉक्स में भारी बिकवाली रही। वहीं, वोडाफोन आइडिया के शेयरों में करीब 9 प्रतिशत की गिरावट आई क्योंकि सरकार ने कंपनी को किसी भी तरह के राहत पैकेज देने से इनकार कर दिया।
किन कंपनियों पर पड़ेगा टैरिफ का असर?
ब्रोकरेज फर्मों का कहना है कि अमेरिकी टैरिफ का सबसे बड़ा असर उन कंपनियों पर पड़ेगा जिनकी अमेरिकी बाजार में भारी हिस्सेदारी है। इनमें कपड़ा उद्योग, इंजीनियरिंग गुड्स, लेदर और कैमिकल सेक्टर प्रमुख हैं। इन क्षेत्रों की कंपनियां अब अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगी क्योंकि भारतीय उत्पाद वहां महंगे हो जाएंगे।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर भारत ने जल्द ही वैकल्पिक बाजारों की तलाश नहीं की और घरेलू खपत को बढ़ावा देने की ठोस योजना नहीं बनाई, तो आने वाले तिमाहियों में कॉरपोरेट आय और बाजार की चाल पर इसका गहरा असर पड़ेगा।
उधर, वाशिंगटन की तरफ से भारत पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ लागू करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है। इसके बाद भारतीय निर्यात पर पहले से लागू 25 प्रतिशत शुल्क अब दोगुना होकर 50 प्रतिशत हो जाएगा। यह कदम रूस से तेल खरीदने को लेकर अमेरिका की नाराजगी के चलते उठाया गया है। यूक्रेन युद्ध के बीच भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद बढ़ाई थी, जिससे अमेरिका के साथ उसके रिश्तों में खटास आ गई है।
ट्रंप प्रशासन का यह निर्णय नई दिल्ली के लिए एक बड़ा आर्थिक झटका है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत से अमेरिका को हर साल लगभग 86.5 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात होता है। इतनी ऊंची दर के टैरिफ से भारतीय सामान अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे और एक्सपोर्टर्स को भारी नुकसान होगा।
आर्थिक जानकारों का क्या कहना है?
आर्थिक जानकारों का कहना है कि यह विवाद भारत की विकास दर पर भी असर डाल सकता है। निर्यात कम होने से विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ेगा और रोजगार के अवसर भी प्रभावित हो सकते हैं।
फिलहाल, निवेशकों और उद्योगों की निगाहें सरकार की अगली रणनीति पर टिकी हैं। यदि केंद्र सरकार अमेरिका के साथ बातचीत कर इस विवाद का हल नहीं निकाल पाती, तो भारतीय अर्थव्यवस्था को आने वाले महीनों में बड़ा झटका लग सकता है।
डिस्क्लेमर
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