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Dehradun News: हनोल में आस्था और परंपरा का संगम, जांगड़ा पर्व में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब

26 अगस्त को महासू देवता मंदिर, हनोल में जांगड़ा पर्व श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया गया। 27 अगस्त को छत्रधारी चालदा महासू महाराज के दर्शन के लिए जौनसार-बावर, सहिया, विकासनगर आदि क्षेत्रों से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे।
Post Published By: Tanya Chand
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Dehradun News: हनोल में आस्था और परंपरा का संगम, जांगड़ा पर्व में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब

Dehradun: 26 अगस्त को महासू देवता मंदिर, हनोल में सदियों पुरानी परंपरा के तहत जांगड़ा पर्व पूरे धार्मिक उल्लास और भक्ति भावना के साथ मनाया गया। महासू देवता को न्याय के देवता माना जाता है और वे न केवल जौनसार-बावर, बल्कि सीमावर्ती हिमाचल प्रदेश और उत्तरकाशी के कई क्षेत्रों में भी पूजनीय हैं। पर्व के अवसर पर मंदिर प्रांगण को पारंपरिक सजावट से सजाया गया था। पूरे वातावरण में ढोल-दमाऊं की गूंज, पारंपरिक गीतों और नृत्य की छटा बिखरी हुई थी।

छत्रधारी चालदा महाराज के दर्शनों के लिए उमड़े श्रद्धालु

जांगड़ा पर्व के अगले दिन यानी 27 अगस्त को, छत्रधारी चालदा महासू महाराज के दर्शनों के लिए मंदिर में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। जौनसार-बावर के कोने-कोने से, सहिया, विकासनगर, त्यूणी, हिमाचल प्रदेश की सीमावर्ती बस्तियों से भक्तजन चलकर मंदिर पहुंचे। इस समय चालदा महासू महाराज का निवास स्थान चकराता विधानसभा क्षेत्र के दसेउ गांव*में है, जहां से उनकी पालकी विशेष पूजा के लिए हनोल लाई गई थी।

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पालकी यात्रा और भक्ति का उल्लास

पालकी यात्रा में महासू देवता के छत्र और निशानों के साथ भारी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। ढोल-दमाऊ, रणभेरी और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन पर भक्त झूमते, नाचते और जयघोष करते हुए चल रहे थे। इस अवसर पर वातावरण पूरी तरह भक्तिमय नजर आया। यात्रा में भाग लेने वाली महिलाएं और युवतियां पारंपरिक वेशभूषा में सजी हुई थीं, जिन्होंने मंदिर प्रांगण में विशेष नृत्य प्रस्तुत कर पर्व की गरिमा को और बढ़ाया।

लोक मान्यताओं में महासू देवता का विशेष स्थान

जौनसार-बावर की परंपराओं में महासू देवता के चार स्वरूपों बासिक, पावसीक, चालदा और थोथदा की बड़ी मान्यता है। चालदा महासू देवता विशेष रूप से यात्रा करते हैं और समय-समय पर विभिन्न गांवों में वास करते हैं। यह विश्वास किया जाता है कि महासू देवता अपने भक्तों के कष्ट हरते हैं और उन्हें न्याय प्रदान करते हैं। यही कारण है कि हर साल हजारों की संख्या में लोग जांगड़ा पर्व पर दर्शन के लिए उमड़ते हैं।

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पारंपरिक संस्कृति और आधुनिक श्रद्धा का संगम

यह पर्व न केवल धार्मिक आयोजन रहा, बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत का भी परिचायक बना। महिलाओं द्वारा प्रस्तुत पारंपरिक लोकनृत्य, युवाओं का उत्साह, बच्चों की भागीदारी और बुजुर्गों की भक्ति सभी ने इस आयोजन को अविस्मरणीय बना दिया। स्थानीय प्रशासन ने भी व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग किया। पानी, चिकित्सा और सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्थाएं की गई थीं।

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