14 दिसंबर 2025 की रात आकाश में टूटते तारों की अद्भुत बारिश देखने को मिलेगी। वर्ष के अंत में होने वाली यह जैमिनिड्स उल्का वृष्टि अंतरिक्ष प्रेमियों के लिए खास अवसर है। खगोलविद अमर पाल सिंह के अनुसार यह उल्काएं क्षुद्रग्रह 3200 फेथॉन से जुड़ी हैं और बिना किसी उपकरण के नंगी आंखों से देखी जा सकती हैं।

जैमिनिड्स उल्का वृष्टि (Img: Google)
New Delhi: आज की रात अंतरिक्ष प्रेमियों के लिए बेहद खास होने वाली है। 14 दिसंबर 2025 की रात आकाश में टूटते तारों की अद्भुत बारिश देखने को मिलेगी। वर्ष 2025 के अंत में होने वाली यह जैमिनिड्स उल्का वृष्टि अंतरिक्ष प्रेमियों के लिए खास अवसर है। खगोलविद अमर पाल सिंह के अनुसार यह उल्काएं क्षुद्रग्रह 3200 फेथॉन से जुड़ी हैं और बिना किसी उपकरण के नंगी आंखों से देखी जा सकती हैं।
वर्ष 2025 के अंतिम दिनों में आकाश प्रेमियों के लिए प्रकृति एक अनोखा और रोमांचक तोहफा देने जा रही है। 14 दिसंबर 2025 की रात्रि को आकाश में दिखाई देने वाली जैमिनिड्स (मिथुन) उल्का वृष्टि वर्ष की सबसे शानदार खगोलीय घटनाओं में से एक मानी जाती है। यह नज़ारा न सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आम लोगों के लिए भी अत्यंत आकर्षक होता है।
खगोलविद अमर पाल सिंह बताते हैं कि पृथ्वी अपने अक्ष पर लगभग 23.5 डिग्री झुकी हुई है और लगातार अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा करती रहती है। पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने को घूर्णन (Rotation) और सूर्य के चारों ओर घूमने को परिभ्रमण (Revolution) कहा जाता है। इसी परिभ्रमण के दौरान जब पृथ्वी किसी धूमकेतु या क्षुद्रग्रह द्वारा छोड़े गए मलबे के क्षेत्र से गुजरती है, तब ये छोटे-बड़े कण पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं।
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ये कण, जो पत्थर, धूल, गैस या जलवाष्प के हो सकते हैं, वायुमंडल में प्रवेश करते ही घर्षण और गुरुत्वाकर्षण बल के कारण जल उठते हैं और क्षण भर के लिए आकाश में चमकते हैं। यही चमक हमें “टूटते तारे” के रूप में दिखाई देती है, जबकि वास्तव में ये तारे नहीं बल्कि उल्काएं (Meteors) होती हैं। इनकी गति लगभग 70 किलोमीटर प्रति सेकंड या उससे भी अधिक हो सकती है।
दिसंबर माह में होने वाली यह उल्का वृष्टि मिथुन (Gemini) तारामंडल की दिशा से आती हुई प्रतीत होती है, इसलिए इसे जैमिनिड्स कहा जाता है। इसे खगोल विज्ञान की भाषा में मीटियर रेडिएंट प्वाइंट कहा जाता है। खास बात यह है कि जैमिनिड्स उल्का वृष्टि किसी धूमकेतु से नहीं, बल्कि क्षुद्रग्रह 3200 फेथॉन से जुड़ी हुई है। यह इसे दुनिया की गिनी-चुनी अनोखी उल्का वर्षाओं में शामिल करती है।
अमर पाल सिंह के अनुसार, 14 दिसंबर 2025 की रात लगभग 8 बजे के बाद से ही उल्काएं दिखनी शुरू हो जाएंगी, लेकिन मध्य रात्रि से सुबह 4 बजे तक का समय सबसे उपयुक्त रहेगा। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर सहित आसपास के क्षेत्रों में यह नज़ारा अपने चरम पर होगा। इस दौरान एक घंटे में लगभग 40 से 70 उल्काएं देखी जा सकती हैं, हालांकि यह मौसम और आकाश की साफ़-सफाई पर निर्भर करेगा।
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उल्काएं आकाश में किसी भी दिशा से दिखाई दे सकती हैं, लेकिन मिथुन उल्का वृष्टि को देखने के लिए उत्तर-पूर्व (North-East) दिशा से शुरुआत करना बेहतर रहेगा। इसके लिए किसी दूरबीन या विशेष उपकरण की आवश्यकता नहीं है। बस किसी अंधेरी, साफ और खुले स्थान से नंगी आंखों से आकाश को निहारें। शहरों में प्रकाश प्रदूषण के कारण दृश्यता थोड़ी कम हो सकती है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह नज़ारा और भी मनमोहक होगा।