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Rehamankhera Tiger Rescue Operation: काकोरी में आतंक के खात्मे की पूरी कहानी

काकोरी के रेहमानखेड़ा में तीन महीनों से चल रहा बाघ का आतंक आखिरकार खत्म हो गया है। डाइनामाइट न्यूज़ आपको बता रहा है इस आतंक के शुरू होने से खत्म होने तक की पूरी कहानी
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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Rehamankhera Tiger Rescue Operation: काकोरी में आतंक के खात्मे की पूरी कहानी

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 22 किलोमीटर काकोरी क्षेत्र में पिछले तीन महीनों से चली आ रही दहशत आखिरकार खत्म हो गई। काकोरी के आसपास के लगभग 60 गांवों के लोग यहां एक बाघ के आतंक के साये में जी रहे थे। यह बाघ कोई साधारण बाघ नहीं था, ये बाघ 2 दर्जन से अधिक जानवरों को अपना निवाला बना चुका था। अब बड़ी खबर है कि उस बाघ को वन विभाग की टीम ने ट्रेंकुलाइज कर दिया। इस बाघ को बेहोश करना और पकड़ना इतना आसान नहीं था, हम आपको बताएंगे इस पूरे ऑपरेशन के बारे में। 

काकोरी के रहमानखेड़ा में पहली बार 3 दिसंबर को इस बाघ ने एंट्री की और इसके बाद इसकी दहशत लगातार बढ़ती गई। वन विभाग की टीम तुरंत एक्शन में आई है। भारतीय वन सेवा की सीनियर IFOS अधिकारी डा रेणू सिंह ने मामले की गंभीरता को समझते हुए बाघ को पकड़ने के लिये वन विभाग की टीम 90 दिनों से यहां डेरा डाले हुई थी। भारतीय वन्य सेवा की सीनियर IFOS अधिकारी डा रेणू सिंह ने इस बाघ को पकड़ने के लिये रहमानखेड़ा में एक खास ऑपरेशन शुरू किया।

इस ऑपरेशन को रहमानखेड़ा टाइगर रेसक्यू ऑपरेशन 2024-25 नाम दिया गया है। डा रेणू सिंह के नेतृत्व में चलाये गये इस ऑपरेशन में वन विभाग के कई अधिकारियों, डॉक्टरों और विशेषज्ञों को शामिल किया गया। वन विभाग की टीम यहां दिन रात डेरा डाले रही है। लेकिन दूसरी तरफ बाघ का आतंक जारी रहा। 

रेहमानखेड़ा में सबसे पहले 3 दिसंबर 2024 को बाघ की गतिविधियों की जानकारी मिली थी। अगले दिन वन विभाग ने बाघ का पता लगाने के लिये रेंज स्तर पर एक टीम का गठन किया गया और बाघ की गतिविधियों को ट्रैक करने का काम शुरू हुआ। 

रहमानखेड़ा संस्थान के अंदर 12 दिसंबर को बाघ ने एक नीलगाय को मारा। इसके बाद बाघ ने 17 दिसंबर को नीलगाय के बछड़े को मारा। बाघ का आतंक जारी रहा और 23, 25 और 28 दिसंबर को अलग-अलग जानवरों को बाघ ने अपना शिकार बनाया। इस तरह बाघ अब तक दो दर्जन जानवरों और पालतु पशुओं को अपना निवाला बना चुका था।

वन विभाग ने कैमरा ट्रैप, ड्रोन और स्थानीय ग्रामीणों की सूचनाओं के आधार पर बाघ का मूवमेंट ट्रैक किया गया। कई बार उसे सुरक्षित पकड़ने की कोशिश की गई, लेकिन वह बच निकलता था। 

टीम ने बुधवार यानी 5 मार्च को बाघ को सुबह 6 बजे ट्रैक किया और बाघ को तीन बार जीरो सर्किल्ड किया गया, जिसके बाद टीम ने बुधवार शाम 6 बजे बाघ को ट्रेंकुलाइज किया। 

डाक्टर दक्ष और डॉक्टर नशीर ने बाघ को हाथी में बैठकर ट्रेंकुलाइज जबकि डॉक्टर आर के सिंह ने बाहरी सीमा पर रहे। बाघ के ट्रेकुलाइज होते ही डा रेनू सिंह का द्वारा शुरू किया गया ऑपरेशन रेहमानखेड़ा सफलतापूर्वक संपन्न हो गया।

रेहमानखेड़ा में बाघ की दहशत का यह पहला मामला नहीं थी। इससे पहले 21वीं सदी में 2003 में यहां पहली बार बाघ की दहशत देखी गयी तब बाघ 30-35 दिनों में खुद चला गया था।

2012 में भी यहां एक एक बाघ 119 दिनों तक रहा, जिसे ट्रेंकुलाइज किया गया। 2020 में यहां एक बाघ 30 दिनों तक रहा। अब दिसंबर 2024 में आया बाघ तीन महीनों बाद ट्रेंकुलाइज किया गया।  बाघ के ट्रेंकुलाइज किये जाने के बाद काकोरी क्षेत्र के लोगों ने राहत की सांसें ली है। डाइनामाइट न्यूज़ भी डा रेनू सिंह को उनके इस अभियान की सफलता के लिये बधाई देता है।

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