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मिलिए अनूठी पहल करने वाले अफसर गुरबचन सिंह से, पुलिस की ड्यूटी के बाद शाम को करते हैं ये नेक काम

पंजाब पुलिस के एक अधिकारी ने राज्य में मादक पदार्थों के खिलाफ जागरुकता पैदा करने का बीड़ा उठाया है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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मिलिए अनूठी पहल करने वाले अफसर गुरबचन सिंह से, पुलिस की ड्यूटी के बाद शाम को करते हैं ये नेक काम

चंडीगढ़: पंजाब पुलिस के एक अधिकारी ने राज्य में मादक पदार्थों के खिलाफ जागरुकता पैदा करने का बीड़ा उठाया है।

कपूरथला जिले में तैनात सहायक उप-निरीक्षक (एएसआई) गुरबचन सिंह काम से घर लौटने के बाद अपनी साइकिल निकालते हैं और मादक पदार्थों के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए पास के बाजार या स्कूल चले जाते हैं।

घर से बाहर निकलने से पहले 56 वर्षीय सिंह अपनी साइकिल से जुड़ी एक लोहे की प्लेट पर लोगों को मादक पदार्थों के इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी देते हुए एक संदेश लिखते हैं, जैसे ‘‘नशेयां नाल शरीर बर्बाद करन वाले आत्मघाती हुंदे ने’’ यानी मादक पदार्थ का सेवन करने वाले आत्मघाती होते हैं।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार सिंह ने कहा, “मैं कुछ शब्दों में बड़ा संदेश देने का प्रयास कर रहा हूं।”

उन्होंने कहा, 'इस प्रयास के पीछे मेरा विचार मादक पदार्थों के इस्तेमाल के खिलाफ जागरूकता फैलाना है। अगर बच्चों को मादक पदार्थों के हानिकारक प्रभावों के बारे में बताया जाएगा, तो वे भटकेंगे नहीं।'

साइकिल चलाने के शौकीन सिंह ने कहा, 'ड्यूटी खत्म करने के बाद मैं अपने घर से अपनी साइकिल लेता हूं और बाजार या स्कूल जाकर लोगों को अच्छे स्वास्थ्य के महत्व के बारे में बताता हूं।”

सिंह जब हलचल भरी और व्यस्त सड़कों से गुजरते हैं तो राहगीर उन्हें उत्सुकता भरी नजरों से देखने लगते हैं। कई लोग उनके प्रयासों का स्वागत करते हैं। सिंह अपने पास आने वालों को परामर्श भी देते हैं।

एएसआई ने कहा कि अगर उन्हें कोई ऐसा मजदूर मिलता है जो धूम्रपान करता है, तो वह उसे तंबाकू से शरीर पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों के बारे में बताते हैं।

सिंह पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर भी प्रकाश डालते हैं और अपने संदेशों के माध्यम से लोगों से पानी बचाने का आग्रह करते हैं।

सिंह ने कहा, 'सामाजिक मुद्दों पर लोगों में जागरूकता पैदा करना मेरा जुनून है।'

उन्होंने कहा कि 1994-95 में उन्होंने शांति का संदेश फैलाने के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी तक करीब 25,000 किलोमीटर की यात्रा की थी।

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