New Delhi: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस तेज हो गई है। इसी बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखना होगा। उन्होंने आत्मनिर्भरता, रक्षा क्षेत्र में प्रगति और भारत की रणनीतिक तैयारियों पर जोर देते हुए कहा कि कोई भी देश भारत का स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं है।
बदलते हालात में भारत का रुख
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आज की दुनिया लगातार बदल रही है और हर दिन नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। उन्होंने कहा कि चाहे महामारी हो, आतंकवाद हो या फिर क्षेत्रीय संघर्ष, यह शताब्दी अब तक की सबसे अस्थिर और चुनौतीपूर्ण साबित हुई है। राजनाथ सिंह ने अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ का जिक्र करते हुए स्पष्ट किया कि अंतरराष्ट्रीय संबंध स्थायी नहीं होते। उन्होंने कहा, “हमारे लिए कोई परमानेंट दोस्त या दुश्मन नहीं है। हम केवल और केवल अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हैं।”
अब विकल्प नहीं, आवश्यकता
रक्षा मंत्री ने आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को मजबूती से पेश किया। उन्होंने कहा कि पहले आत्मनिर्भरता को एक विशेषाधिकार माना जाता था, लेकिन अब यह देश के अस्तित्व और प्रगति के लिए अनिवार्य हो गई है। उन्होंने कहा कि भारत किसी को दुश्मन नहीं मानता, लेकिन हमारे किसानों और उद्यमियों के हित सबसे महत्वपूर्ण हैं। वैश्विक परिस्थितियां हमें सिखाती हैं कि हमें अपने बलबूते पर मजबूत होना होगा।
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रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की छलांग
राजनाथ सिंह ने बताया कि भारत का रक्षा निर्यात पिछले कुछ वर्षों में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि 2014 में भारत का रक्षा निर्यात ₹700 करोड़ से भी कम था, जबकि आज यह बढ़कर ₹24,000 करोड़ तक पहुंच गया है। यह बदलाव दर्शाता है कि भारत अब केवल रक्षा उपकरणों का खरीदार नहीं रहा, बल्कि वह दुनिया के लिए एक भरोसेमंद रक्षा उत्पादक और निर्यातक भी बन गया है। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता और भारतीय उद्योगों की क्षमता का प्रमाण है।
स्वदेशी उपकरणों से सटीक ऑपरेशन
रक्षा मंत्री ने भारतीय सेनाओं की क्षमता और स्वदेशी उपकरणों की ताकत पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमारे बलों ने स्वदेशी हथियारों और उपकरणों का उपयोग करते हुए सटीक हमले किए, जिससे यह साबित होता है कि सफलता केवल उपकरणों पर नहीं बल्कि दूरदर्शिता, लंबी तैयारी और समन्वय पर निर्भर करती है। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर का उदाहरण देते हुए कहा कि यह सिर्फ कुछ दिनों की लड़ाई नहीं थी, बल्कि इसके पीछे वर्षों की रणनीतिक तैयारी और रक्षा सुधारों का योगदान था। उन्होंने कहा कि जैसे एक खिलाड़ी दौड़ में कुछ सेकंड में जीत हासिल करता है, लेकिन इसके पीछे महीनों और वर्षों की मेहनत होती है, वैसे ही हमारे सैनिकों की सफलता के पीछे वर्षों की तैयारी और आत्मनिर्भर उपकरणों की शक्ति है।

