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ISRO का अब तक का सबसे महंगा मिशन, जिसने रचा नया अंतरिक्ष इतिहास; जानिए क्या है NISAR की खासियत

ISRO ने अब तक का सबसे महंगा अंतरिक्ष मिशन NISAR लॉन्च कर नया इतिहास रच दिया है। NASA के सहयोग से बने इस मिशन की लागत ₹12,500 करोड़ है। यह मिशन धरती पर प्राकृतिक बदलावों की निगरानी करेगा और भविष्य की आपदाओं से बचाव में अहम भूमिका निभाएगा।
Post Published By: Poonam Rajput
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ISRO का अब तक का सबसे महंगा मिशन, जिसने रचा नया अंतरिक्ष इतिहास; जानिए क्या है NISAR की खासियत

New Delhi: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक बार फिर अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में अपना परचम लहराया है। 30 जुलाई 2025 को श्रीहरिकोटा से लॉन्च हुआ NISAR मिशन न केवल तकनीकी रूप से ऐतिहासिक है, बल्कि लागत के मामले में भी यह अब तक का सबसे महंगा भारतीय अंतरिक्ष अभियान बन गया है। नासा और इसरो की साझेदारी में तैयार किए गए इस प्रोजेक्ट की कुल लागत लगभग 1.5 बिलियन डॉलर, यानी ₹12,500 करोड़ रुपये आंकी गई है। यह आंकड़ा जितना बड़ा है, इस मिशन की संभावनाएं उससे कहीं ज्यादा व्यापक हैं।

NISAR का क्या है पूरा नाम? 

सूत्रों के अनुसार, NISAR का पूरा नाम है “NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar Mission”। इसका उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर होने वाले हर छोटे-बड़े बदलाव की निगरानी करना है। इस उपग्रह में दो अलग-अलग रडार तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है—NASA का L-बैंड रडार और ISRO का S-बैंड रडार। यही ड्यूल-फ्रीक्वेंसी रडार सिस्टम इसे खास बनाता है और इसे दुनिया का पहला ऐसा सैटेलाइट बनाता है जो इस तरह की टेक्नोलॉजी के साथ लॉन्च किया गया है।

इस मिशन का वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है। भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, भूस्खलन, हिमनदों की गति, और जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर प्राकृतिक बदलावों को यह सैटेलाइट बारीकी से ट्रैक कर सकेगा। खास बात ये है कि NISAR हर 12 दिन में धरती की सतह का हाई-रिज़ॉल्यूशन नक्शा तैयार करेगा। इन आंकड़ों का इस्तेमाल न केवल आपदा प्रबंधन में किया जा सकेगा, बल्कि कृषि और जल संसाधन प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में भी इसका उपयोग होगा।

इस संयुक्त मिशन में NASA ने L-बैंड रडार, GPS और डेटा सिस्टम की जिम्मेदारी ली है, जबकि ISRO ने S-बैंड रडार, सैटेलाइट बस और लॉन्चिंग सिस्टम का निर्माण किया है। इसरो की भागीदारी इसमें लगभग ₹788 करोड़ रुपये की रही है। यही कारण है कि इस मिशन को वैश्विक सहयोग और तकनीकी नवाचार का प्रतीक माना जा रहा है।

यदि ISRO के पहले के मिशनों की बात करें तो मंगलयान मात्र ₹450 करोड़ में, और चंद्रयान-3 करीब ₹615 करोड़ की लागत में लॉन्च किया गया था। इनकी तुलना में NISAR की लागत बहुत ज्यादा है। पर इसकी वजह भी साफ है—यह सिर्फ एक मिशन नहीं, बल्कि एक वैश्विक स्तर का पर्यावरण निगरानी तंत्र है, जो आने वाले वर्षों में पृथ्वी के बदलते स्वरूप को वैज्ञानिक ढंग से समझने में अहम भूमिका निभाएगा। इस मिशन की लॉन्चिंग ने न केवल भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं को दुनिया के सामने फिर साबित किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि भारत अब अंतरिक्ष विज्ञान में महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है।

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