New Delhi: शुक्रवार, 15 अगस्त को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच अलास्का में आमने-सामने मुलाकात हो रही है। पूरी दुनिया की नजर इस शिखर वार्ता पर टिकी है, जहां यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के प्रयासों पर चर्चा होनी है। इस मुलाकात की गूंज भारत तक भी सुनाई दे रही है, क्योंकि यह न केवल भूराजनैतिक समीकरणों, बल्कि भारत की ऊर्जा नीति और कूटनीतिक संतुलन के लिए भी बेहद अहम मानी जा रही है।
हाल के सप्ताहों में भारत ने रूसी कच्चे तेल की खरीद को लेकर ट्रंप प्रशासन के निशाने पर रहने के बावजूद इस वार्ता का गर्मजोशी से समर्थन किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर रूसी तेल खरीदने के चलते 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ लगाया है, जिससे नई दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच तनाव बढ़ा है।
हालांकि, भारत ने अब तक रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर एक संतुलित रुख अपनाया है। रूस के साथ ऐतिहासिक संबंधों के साथ-साथ, भारत पश्चिमी देशों के साथ भी अपने रणनीतिक संबंधों को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। भारत ने मॉस्को और कीव के बीच बैक-चैनल संवाद में भी शांत भूमिका निभाई है। हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच हुई फोन कॉल में भी यूक्रेन संकट की चर्चा हुई थी।
भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि ट्रंप-पुतिन वार्ता यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में एक नई शुरुआत हो सकती है। यदि इस बैठक से कोई सार्थक समाधान निकलता है और रूस पर लगे प्रतिबंधों में नरमी आती है, तो इससे भारत को रियायती रूसी तेल खरीद में राहत मिल सकती है। साथ ही यह ट्रंप प्रशासन के साथ उत्पन्न तनाव को भी कम कर सकता है।
हालांकि भारत इस पूरे घटनाक्रम को बेहद सावधानीपूर्वक और रणनीतिक नजरिए से देख रहा है। उसे इस बात का आभास है कि अगर वह क्षेत्रीय रियायतों से जुड़े किसी समझौते का समर्थन करता है, तो इससे अमेरिका और यूरोप के साथ उसके संबंधों में नया तनाव पैदा हो सकता है।
अलास्का में हो रही यह मुलाकात केवल अमेरिका और रूस के संबंधों की दिशा नहीं तय करेगी, बल्कि यह भारत के लिए भी एक कूटनीतिक मोड़ साबित हो सकती है। भारत इस समय ऊर्जा सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और रणनीतिक संतुलन के बीच एक नाजुक संतुलन साधने की कोशिश में है, और यह बैठक उसकी नीति निर्धारण में निर्णायक साबित हो सकती है।