New Delhi: 1999 की गर्मियों में लड़ी गई कारगिल जंग को आज 26 साल हो चुके हैं, लेकिन इस युद्ध की एक कहानी ऐसी भी है जो टोलोलिंग, टाइगर हिल या पॉइंट 4875 जितनी ही ऊंची है – वो कहानी है सैनिकों की चिट्ठियों की, उनकी भावनाओं की, जो उन्होंने बर्फीली चोटियों से अपने घर भेजी थीं। इन पत्रों में न गोलियों का डर था, न मौत की चिंता – सिर्फ़ कर्तव्य की गरिमा, घर के बने खाने की याद और बच्चों को पढ़ाई की सीख थी।
सूत्रों के मुताबिक, इस वर्ष कारगिल विजय दिवस पर जब द्रास में बिगुल बजा, तो वो सिर्फ़ बंदूकों और टैक्टिक्स की जीत नहीं थी, बल्कि सैनिकों की अंतरात्मा से निकले उन शब्दों की जीत भी थी, जो चुपचाप घर पहुंच गए लेकिन उन चिट्ठियों के लिखने वाले कभी नहीं लौटे।
जब एक चिट्ठी बन गई देशभक्ति का आईना
कैप्टन विजयंत थापर का वो पत्र, जिसे उन्होंने अपने माता-पिता के लिए लिखा था – “जब तक आपको ये चिट्ठी मिलेगी, मैं आकाश से देख रहा होऊंगा…” – आज भी देश के युवाओं को रुला देता है। ये सिर्फ़ आखिरी शब्द नहीं थे, ये थे उस नई देशभक्ति की परिभाषा, जो युद्धभूमि से निकली और हर भारतीय के दिल तक पहुंची।
तोलोलिंग की नई चढ़ाई: श्रद्धांजलि या संदेश?
इस बार भारतीय सेना ने 11 जून को जो स्मारक अभियान चलाया, वो महज एक रूटीन नहीं था। ये नई पीढ़ी के लिए एक संदेश था – “तुम्हारी आज़ादी की नींव इन कंधों पर खड़ी है जो कभी लौटे नहीं।” 30 सैनिकों ने फिर से तोलोलिंग की ऊंचाइयों पर चढ़ाई की, और जब तिरंगा फहराया गया, तो जैसे इतिहास एक बार फिर जीवित हो गया।
कारगिल: जहाँ गोली से पहले ज़मीर बोला
कारगिल युद्ध की सबसे अनकही बात यह है कि भारतीय सैनिकों ने दुश्मन की सीमा पार नहीं की। इंच-इंच ज़मीन अपने देश की थी, और वही बचानी थी। युद्ध की यह नैतिकता ही भारत की सबसे बड़ी जीत थी – संयम में साहस की तलाश।
जब वीरता ने मांओं की मन्नतें अधूरी छोड़ दीं
545 शहीदों की गिनती सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि 545 कहानियां हैं उन घरों की, जहाँ दीये जलते रहे, जहाँ बेटियों की शादियां रुकी, और जहाँ बेटे की तस्वीर हर पूजा में शामिल हुई। कारगिल सिर्फ एक युद्ध नहीं था, वो भारत की आत्मा की परीक्षा थी – और हम सब उस परीक्षा में पास हुए क्योंकि कोई और वहाँ लड़ रहा था। कारगिल विजय दिवस पर हर साल भाषण होते हैं, बिगुल बजते हैं, पर असली श्रद्धांजलि तब होगी जब हम उन चिट्ठियों को पढ़ें, उनके शब्दों में छिपे जज़्बे को समझें और एक पल ठहर कर कहें –”वो लौटे नहीं, ताकि हम कभी झुकें नहीं।”

