स्व. चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को हापुड़ के बाबूगढ़ छावनी के पास स्थित नूरपुर गांव में हुआ था। उनके पिता चौधरी मीर सिंह एक साधारण किसान थे और माता नेत्र कौर धर्मपरायण महिला थीं। प्रारंभिक शिक्षा जानीखुर्द गांव की पाठशाला से प्राप्त कर उन्होंने 1926 में मेरठ कॉलेज से कानून की डिग्री ली और गाजियाबाद में वकालत शुरू की।

चौधरी चरण सिंह
Baghpat: भारत रत्न से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह की आज जयंती है। उन्हें देश के किसान नेता के रूप में विशेष पहचान मिली। चौधरी चरण सिंह ऐसे पहले नेता थे, जिनके 77वें जन्मदिन पर देशभर के किसानों ने 77 लाख रुपये की थैली भेंट कर इतिहास रच दिया था। यह किसानों की उस दीवानगी का प्रतीक था, जो उन्हें अपना सच्चा हितैषी मानते थे।
चौधरी साहब ने न केवल किसानों को जमींदारी प्रथा से मुक्ति दिलाई, बल्कि अन्याय के खिलाफ खड़े होने का आत्मविश्वास भी उनमें पैदा किया। फूस के छप्पर से प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने वाले चौधरी चरण सिंह सादगी, ईमानदारी और सिद्धांतों की राजनीति के प्रतीक थे।
जातिवाद के कट्टर विरोधी थे चौधरी चरण सिंह
चौधरी चरण सिंह सामाजिक समानता के प्रबल समर्थक थे। वर्ष 1939 में कांग्रेस विधायक दल की बैठक में उन्होंने प्रस्ताव रखा कि शैक्षणिक संस्थानों और लोक सेवाओं में प्रवेश के समय किसी हिंदू प्रत्याशी से उसकी जाति न पूछी जाए, केवल यह देखा जाए कि वह अनुसूचित जाति से है या नहीं।
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उन्होंने 22 मई 1954 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर संविधान में संशोधन का सुझाव दिया, जिसमें अंतरजातीय विवाह करने वाले युवक-युवतियों को राजपत्रित पदों पर प्राथमिकता देने की बात कही गई थी। वर्ष 1967 में मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने आदेश जारी किया कि जाति विशेष के नाम से चल रही शिक्षण संस्थाओं को सरकारी अनुदान नहीं दिया जाएगा। इसके परिणामस्वरूप कई संस्थानों का नाम महापुरुषों के नाम पर रखा गया।
पुस्तक ‘धरा पुत्र चौधरी चरण सिंह और उनकी विरासत’ के अनुसार चौधरी साहब ने पार्टी संचालन और चुनाव के लिए किसी पूंजीपति से चंदा नहीं लिया, जो आज की राजनीति में एक दुर्लभ उदाहरण है।
किसानों के लिए किए गए ऐतिहासिक कार्य
चौधरी चरण सिंह ने 17 मई 1939 को संयुक्त प्रांत की धारा सभा में ऋण निवृत्ति विधेयक पास कराकर किसानों को कर्ज से राहत दिलाई। उन्होंने जमींदारी उन्मूलन, भूमि सुधार अधिनियम लागू कराने, पटवारी राज से मुक्ति, चकबंदी अधिनियम, मिट्टी परीक्षण, कृषि को आयकर से बाहर रखने जैसे कई क्रांतिकारी फैसले किए।
इसके साथ ही उन्होंने ब्रिटिश काल के उस कानून को समाप्त कराया, जिसमें नहर की पटरियों पर चलने पर किसानों से जुर्माना वसूला जाता था। वर्ष 1961 में वायरलेस युक्त पुलिस गश्त, भूमि अभिलेख सुधार और कृषि उपज की अंतरराज्यीय आवाजाही पर लगी रोक हटवाने जैसे फैसले भी उनके खाते में दर्ज हैं।
किसानों की ऐतिहासिक दीवानगी
रालोद नेता ओमबीर ढाका के अनुसार जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार से चौधरी चरण सिंह को मंत्रिमंडल से बाहर किया गया, तो किसानों में भारी आक्रोश फैल गया। 23 दिसंबर 1978 को चौधरी साहब के 77वें जन्मदिन पर देशभर के किसानों ने चंदा एकत्र कर दिल्ली में आयोजित रैली में 77 लाख रुपये की थैली भेंट की। उस रैली में उमड़े जनसैलाब ने पूरे देश को चौंका दिया था। चौधरी चरण सिंह ने इस धनराशि से किसान ट्रस्ट की स्थापना की, जो आज भी किसानों के हित में कार्य कर रहा है।
साधारण किसान परिवार से प्रधानमंत्री तक का सफर
स्व. चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को हापुड़ के बाबूगढ़ छावनी के पास स्थित नूरपुर गांव में हुआ था। उनके पिता चौधरी मीर सिंह एक साधारण किसान थे और माता नेत्र कौर धर्मपरायण महिला थीं। प्रारंभिक शिक्षा जानीखुर्द गांव की पाठशाला से प्राप्त कर उन्होंने 1926 में मेरठ कॉलेज से कानून की डिग्री ली और गाजियाबाद में वकालत शुरू की। इसके बाद बागपत को अपनी कर्मस्थली बनाकर उन्होंने राजनीति में लंबा संघर्ष किया और अंततः 28 जुलाई 1978 को देश के प्रधानमंत्री बने।