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न्यूनतम अदालती हस्तक्षेप के साथ स्थिर विवाद समाधान भी विदेशी निवेश के लिए जरूरी

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश एम. आर. शाह ने कहा है कि भारत में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए न्यूनतम अदालती हस्तक्षेप के साथ स्थिर विवाद समाधान जरूरी है। पढ़िए पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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न्यूनतम अदालती हस्तक्षेप के साथ स्थिर विवाद समाधान भी विदेशी निवेश के लिए जरूरी

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश एम. आर. शाह ने कहा है कि भारत में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए न्यूनतम अदालती हस्तक्षेप के साथ स्थिर विवाद समाधान जरूरी है।

न्यायमूर्ति शाह ने ‘द्वितीय आर्बिट्रेट इन इंडिया कॉन्क्लेव- 2023’ में कहा कि वैश्विक व्यापार में वृद्धि से विवादों को हल करने के लिए एक तंत्र के रूप में वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) का महत्व बढ़ जाता है।

न्यायमूर्ति शाह ने कहा, ‘‘भारत में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए स्थिर विवाद समाधान आवश्यक है। जब तक विवादों का समय पर और किफायती समाधान नहीं होता है, तब तक भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र नहीं बन सकता है।’’

शाह ने कहा, ‘‘जिन कारणों से भारत इस क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है, उन्हें समझने और फिर इन क्षेत्रों पर काम करने की आवश्यकता है। भारत को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र बनाने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए न्यूनतम अदालती हस्तक्षेप अनिवार्य है।’’

कॉन्क्लेव का दूसरा संस्करण भारतीय विवाद समाधान केंद्र द्वारा भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) के इंडिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लीगल रिसर्च एंड एजुकेशन, गोवा के सहयोग से यहां डॉ आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित किया गया था।

न्यायमूर्ति शाह इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे और उन्होंने अध्यक्षीय भाषण दिया, जिसके बाद एक परिचर्चा हुई। परिचर्चा का विषय था, ‘‘भारत को अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता का केंद्र बनाना: भारत में विदेशी विधि फर्म को अनुमति देने के बदले मध्यस्थता में वर्तमान रुझान और चुनौतियां।’’

शीर्ष अदालत की पूर्व न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा ने भी इस अवसर पर अपने विचार प्रकट किये। न्यायमूर्ति मल्होत्रा ने कहा कि भारत मध्यस्थता निर्णयों के क्रियान्वयन के मामले में पिछड़ रहा है और इस संबंध में गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यद्यपि यह सच है कि मध्यस्थता निर्णयों के क्रियान्वयन की प्रक्रिया धीमी है, लेकिन सबसे पहला विलंब मध्यस्थता प्रक्रिया पूरी करने में ही होता है।

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