महराजगंज: झोपड़ी में रहने को मजबूर प्रधान का पूरा परिवार, मछली का शिकार कर हो रहा गुजर-बसर

एक ओर जहां चुनाव जीतने के बाद प्रधान को आलीशान बंगले और गाड़ियों जैसी सुविधाएं मिलती हैं। वहीं एक प्रधान ऐसे भी हैं जो अपने परिवार के साथ गांव की झोपड़ी में रहते हैं। वर्तमान प्रधान होने के बावजूद वो अपनी बेटे, बहू और बेटियों के साथ झोपड़ी में रहते हैं। पढ़ें डाइनामाइट न्यूज़ पर पूरी खबर..

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 29 July 2019, 12:18 PM IST
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निचलौल (महराजगंज): निचलौल विकासखंड के ग्राम सभा सुदूरवर्ती गांव के कोल्हुआ ग्राम प्रधान का कुनबा आज भी झोपड़ी में रहता है। अब इसे व्यवस्था की खामी कहें या मजबूरी ये सोचने वाली बात है। जहां एक और प्रधान बनने के बाद लोगों को कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं, वहीं आज भी एक प्रधान झोपड़ी में रहता है। 

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महराजगंज जिले के निचलौल विकासखंड के सुदूरवर्ती गांव कोल्हुआ के प्रधान श्रीकांत साहनी का पूरा परिवार झोपड़ी में रहकर गुजर बसर कर रहा है। श्रीकांत मछली का शिकार कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। श्रीकांत साहनी साल 2015 में गांव के प्रधान बने हैं, तब से आज तक उनके पास कोई पक्का मकान नहीं है। जबकि ग्राम पंचायत के दोनों टोलों पर करीब 70 लाभार्थियों को सीएम और पीएम आवास मिल चुका है।

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श्रीकांत बताते हैं कि इनके तीन अन्य भाई शिवकुमार, गोपाल और हरिद्वार हैं जो अलग रहते हैं। इनमें से दो के पास कामचलाऊ पक्का मकान है। इनके दो बेटे और दो बेटियां हैं। बेटे विजय और रामदयाल हैं जिनकी शादी हो चुकी है। बेटियां पुष्पा और सुमन की शादी करनी है, दोनों अभी पढ़ रही हैं। इनके पास केवल 25 डिसमिल कृषि भूमि है। जिससे पूरे साल परिवार के पोषण के लिए अनाज नहीं हो पाता है।

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श्रीकांत का कहना है कि बीपीएल सेंसस सूची 2002 व 2011 की आर्थिक गणना सूची में इनका नाम शामिल नहीं है। जिससे आवास के लिए इनकी पात्रता नहीं है। वहीं बीडीओ रविन्द्र वीर यादव ने बताया कि ग्राम प्रधान होने से आवास की पात्रता से कोई मतलब नहीं है। प्रधान का नाम यदि 2011 की आर्थिक गणना की सूची में शामिल है तो उसे आवास के लिए चयनित किया जा सकता है।