महराजगंज: नेशनल हाइवे Vs बाई-पास, कुछ सुलगते सवाल..

मनीष वर्मा

महराजगंज कस्बे के हजारों व्यापारी परिवार इन दिनों सत्तारुढ़ भाजपा की ‘व्यापारी विरोधी और तोड़ो व उजाड़ो नीति’ से परेशान हैं। कस्बे के बीचों-बीच से राष्ट्रीय राजमार्ग का जबरन, बिना व्यापारियों की सहमति के निर्माण कराया जा रहा है। व्यापारी अपने नंबर की जमीनों पर सौ साल से अधिक से काबिज है फिर भी सरकारी नुमाइंदे अपनी मनमानी पर उतारु हैं। आखिर क्यों? क्या इसका कोई समाधान है? ग्राउंड जीरो से डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव..

महराजगंज में तोड़फोड का दृश्य
महराजगंज में तोड़फोड का दृश्य


महराजगंज: बात 2016 की है, तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार में पहली बार ‘महराजगंज महायोजना’ के तहत नगर के चारों ओर बाईपास बनाकर कस्बे वासियों को जाम से मुक्ति दिलाने का प्रयास शुरु हुआ। डाइनामाइट न्यूज़ के पास मौजूद दस्तावेजों के मुताबिक तत्कालीन सरकार में तय किया गया था कि नगर के चारों तरफ 22 किमी की दूरी में बाईपास बनेगा और इसकी सड़क 45 मीटर चौड़ी होगी। इसमें निर्माण और जमीनों के मुआवजे को लेकर करीब 600 करोड़ रुपये के खर्च का इस्टीमेट पिछली सरकार में पीडब्लयूडी ने बनाकर शासन को भेज दिया, जिस पर मुख्यमंत्री कार्यालय ने वित्त विभाग को स्वीकृति का निर्देश दिया।

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इसी बीच 2017 में राज्य में चुनाव हुए औऱ सरकार बदल गयी। नयी व्यवस्था में देश के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी 25 जनवरी 2018 को परतावल आये और बाईपास के निर्माण का ऐलान कर गये, उस दौरान मंच पर राज्य के पीडब्ल्यूडी मंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी थे। इसी साल एक बार फिर 30 जून को मौर्य नगर में आये और ऐलान किया कि कस्बे के चारों और बाईपास बनेगा। 

अरबों रुपये के बर्बादी का कौन होगा जिम्मेदार?

अब ऐसे में सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह है कि जब बाईपास बनेगा ही तो फिर नगर के बीचों-बीच से क्या राष्ट्रीय राजमार्ग निकालकर अरबों रुपये के सरकारी धन की बर्बादी होनी चाहिये? नितिन और केशव की घोषणा के मुताबिक साल-दो साल में बाईपास बनेगा ही। अब आप खुद सोचें जब बाईपास बन जायेगा तो फिर क्या गोरखपुर या फरेन्दा की तरफ से गुजरने वाला वाहन नगर से होकर जायेगा या फिर वह सीधे बाईपास पकड़कर अपना समय बचायेगा, जैसे नौतनवा व फरेन्दा  हाइवे से गुजरने वाले वाहन करते हैं।

‘महराजगंज महायोजना’ में बाईपास का प्रस्तावित मानचित्र

अंदर की क्या है कहानी

ऐसे में क्या कारण है कि नेशनल हाइवे के इंजीनियर, ठेकेदार और नगर के दो-चार शरारती तत्वों का गठजोड़ इतनी जल्दबाजी में है कि वे साल-दो साल बाईपास के निर्माण का इंतजार नही कर सकते और तत्काल शहर के स्वरुप को समाप्त कर बीचों-बीच से हाईवे निकालने पर आमादा हैं? क्या इसके पीछे अरबों रुपये के सड़क निर्माण के ठेके की लालच है? कस्बे के बीचों-बीच अगर ये सड़क साल-दो साल के लिए बना भी दी गयी तो फिर इस पर जो अरबों रुपये बर्बाद हो जायेगा, उसका जिम्मेदार कौन होगा? क्या ये बात जिले के जिम्मेदार बड़े अफसरों और जनप्रतिनिधियों ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के चेयरमैन अथवा सरकार के जिम्मेदारों के संज्ञान में लायी? 

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ये है इतिहास

स्थानीय नागरिकों ने डाइनामाइट न्यूज़ को बताया कि 1986 में महराजगंज कस्बा चिउरहां मऊपाकड़ के नाम से एक ग्राम सभा था। 1987 में इसे तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नगर पंचायत और 1988 में नगर पालिका घोषित किया। 2 अक्टूबर 1989 को इसे जिला बनाया गया। तब यहां 3 मीटर चौड़ी सड़क होती थी और यह सड़क पीडब्ल्यूडी की देखरेख में थी। 2018 में इस सड़क को एनएचएआई को सौंप दिया गया। 

सुंदरीकरण के नाम पर दी जा रही है गुमराह करने वाली दलीलें

जो काकस नगर को बर्बाद करने पर तुला है वह तर्क दे रहा है कि नगर पालिका- महराजगंज का इस सड़क के बन जाने के बाद सुंदरीकरण हो जायेगा और सड़क चौड़ी होने से जाम से मुक्ति मिल जायेगी। 25 वार्डों में फैले महराजगंज कस्बे में सिर्फ एक सड़क के चौड़ीकरण से कैसे यह पूरा कस्बा सुंदर बन सकता है? यह सिर्फ नेशनल हाईवे निकालने और आनन-फानन में अरबों रुपये खपाने की योजना भर है। हाइवे निकालने की इस योजना से सिर्फ एक तरफ की – गोरखपुर से फरेन्दा – सड़क कवर हो रही है। मेन चौराहे से निचलौल रोड की तरफ की सड़क पुरानी स्थिति में ही रहेगी यानि अभी जैसी है वैसी ही। क्या यह नगर का समग्र सुंदरीकरण कहलायेगा? बाकी 25 वार्ड के अंदर की सड़कों, गंदगी, कूड़े, बिजली, स्वास्थ्य की समस्याएं जस की तस रहेगी और तर्क दिया जा रहा है इस एक मार्ग के सड़क के निर्माण से शहर का विकास हो जायेगा?

‘महराजगंज महायोजना’ में बाईपास का प्रस्तावित विवरण

रहस्यमय चुप्पी

सबसे खतरनाक औऱ चिंता की बात जिले के आला अफसरों और जनप्रतिनिधियों की रहस्यमय चुप्पी है। ये जनता के किसी भी सवाल का वाजिब जवाब तक नहीं देना चाह रहे। आखिर क्यों? क्या कल को कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी अथवा अरबों रुपये सिर्फ साल-दो साल के लिए (बाईपास निर्माण तक) बर्बाद कर दिये गये औऱ कोर्ट ने कोई जवाब मांगा तो फिर ये क्या मुंह दिखायेंगे? हालत इतनी खराब है कि कोई भी जिम्मेदार जनता को समझाना-बुझाना तो दूर मीडिया के सवालों तक का सामना करने का साहस नहीं दिखा रहा, किसी बात की कोई जानकारी किसी को नहीं दी जा रही कि कितने फीट सड़क के दोनों तरफ तोड़ने की योजना है? यदि नंबर की जमीन तोड़ी जायेगी तो क्या कोई मुआवजा दिया जायेगा?  शिकारपुर से लेकर मेन चौराहे और फिर वहां से महुअवां तक सड़क के दोनों किनारे कितनी संख्या में मकान व दुकाने तोड़ने के लिए चिन्हित किये गये हैं। जब इस बारे में जिले के बड़े अफसरों और इंजीनियरों से पूछा जाता है तो वे टालू रवैया अपनाने लगते हैं और थोड़ी देर में जानकारी देने का बहाना बना सवालों से कन्नी काटने लगते हैं।

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इन सवालों का कौन देगा जवाब?

स्थानीय नागरिक सवाल उठा रहे हैं कि कई जगह महज 75 फीट में सिक्स लेन का हाईवे बनाया गया है लेकिन महराजगंज में 4 लेन का हाईवे 100 फिट में बनाया जा रहा है। क्या ये बात सही है? यदि हां तो फिर ये दोहरा पैमाना.. महराजगंज को बर्बाद करने की साजिश है या फिर जनता के टैक्स के पैसों पर अरबों रुपये का इस्टीमेट बना सरकारी धन लूटने का एक बड़ा षड़यंत्र? आखिर इन सवालों का जवाब आम जनता को क्यों नहीं दिया जा रहा? क्या ये जिम्मेदार अपने आप को सिस्टम से ऊपर समझते हैं या फिर ये तभी अपनी जवाबदेही समझेंगे जब कोई कोर्ट इन्हें तलब कर लेगा? 










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