नई दिल्ली: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने आने वाली एकादशी तिथि का विशेष धार्मिक महत्व होता है। लेकिन ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे निर्जला एकादशी कहा जाता है, सबसे कठिन और पुण्यदायक मानी जाती है। इस वर्ष निर्जला एकादशी 6 जून 2025 (शुक्रवार) को मनाई जाएगी। यह दिन पूर्ण संयम, तपस्या और भक्ति का प्रतीक होता है, क्योंकि इस व्रत में जल तक ग्रहण नहीं किया जाता।
क्यों मनाई जाती है निर्जला एकादशी?
पुराणों के अनुसार, एकादशी व्रत करने से मनुष्य के जीवन में पवित्रता आती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन जिन लोगों से वर्षभर की सभी 24 एकादशियों का व्रत नहीं हो पाता, उनके लिए निर्जला एकादशी का व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। मान्यता है कि एक निर्जला एकादशी का व्रत 24 एकादशियों के बराबर पुण्य प्रदान करता है।
यह व्रत भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि महाभारत के भीमसेन ने स्वयं इस व्रत को रखा था। उन्हें खाने-पीने की आदत के कारण अन्य एकादशी व्रतों का पालन करना कठिन लगता था, तब भगवान कृष्ण ने उन्हें निर्जला एकादशी का सुझाव दिया था।
व्रत और पूजा का शुभ मुहूर्त
- व्रत तिथि आरंभ: 6 जून 2025 को सुबह 2:15 बजे
- व्रत तिथि समाप्त: 7 जून 2025 को सुबह 4:47 बजे
- पूजा का शुभ मुहूर्त: 6 जून को सुबह 5:23 बजे से 10:36 बजे तक
इस अवधि में भक्त भगवान विष्णु की पूजा, व्रत कथा पाठ, तुलसी अर्पण और दान आदि कार्य करते हैं। कई लोग पूरी रात भजन-कीर्तन में भी समय बिताते हैं।
व्रत का महत्व और फायदे
- इस दिन व्रत रखने से पापों का नाश होता है
- भगवान विष्णु प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं
- यह व्रत मृत पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करता है
- यमलोक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है
- मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है
क्या करें और क्या न करें?
- जल या अन्न का सेवन न करें (यदि स्वास्थ्य अनुमति न दे तो फलाहार या जल उपवास अपनाएं)
- क्रोध, निंदा और अपवित्र आचरण से दूर रहें
- व्रत के दिन झूठ न बोलें
- रात्रि में भारी भोजन न करें
स्वास्थ्य का रखें विशेष ध्यान
चूंकि यह व्रत भीषण गर्मी के समय रखा जाता है और इसमें जल भी नहीं पिया जाता, इसलिए व्रत रखने से पहले शरीर को हाइड्रेट करना आवश्यक है। व्रत के एक दिन पहले और बाद में नींबू पानी, नारियल पानी और फल का सेवन करें। यदि स्वास्थ्य ठीक न हो, तो निर्जल उपवास की जगह फलाहार करें और भक्ति भाव बनाए रखें।
निर्जला एकादशी न केवल व्रत बल्कि आत्म-संयम, शुद्धता और भगवान विष्णु के प्रति अपार श्रद्धा का प्रतीक है। यह व्रत जीवन को आध्यात्मिक दिशा देने वाला और मोक्ष की ओर ले जाने वाला है। यदि सही भावना और नियमों के साथ इसे किया जाए, तो यह मानव जीवन को सार्थक बना सकता है।

