Washington: दक्षिण अमेरिका में वेनेज़ुएला और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच तनाव एक बार फिर चरम पर पहुँच गया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने संकेत दिया है कि निकोलस मादुरो की वेनेज़ुएला सरकार के खिलाफ सैन्य कार्रवाई बस समय की बात हो सकती है। हाल ही में उन्हें एक उच्च-स्तरीय ब्रीफिंग मिली, जिससे स्थिति और बिगड़ गई है।
रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिकी प्रशासन लंबे समय से वेनेज़ुएला पर सत्ता परिवर्तन के लिए दबाव बना रहा है। हालाँकि, इस बार, सैन्य विकल्पों पर स्पष्ट रूप से विचार किया जा रहा है।
ऑपरेशन ‘सदर्न स्पीयर’ के तहत तैनाती
पेंटागन ने ऑपरेशन सदर्न स्पीयर के तहत कैरिबियाई क्षेत्र में एक दर्जन से ज़्यादा युद्धपोत, क्रूज़र, विध्वंसक और 15,000 से ज़्यादा सैनिक तैनात किए हैं। ये सभी बल अंतिम आदेशों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
सबसे महत्वपूर्ण संकेत यह है कि दुनिया का सबसे बड़ा विमानवाहक पोत, यूएसएस गेराल्ड आर. फोर्ड, भी इस क्षेत्र में तैनात किया गया है। इसे न केवल दबाव की रणनीति माना जा रहा है, बल्कि संभावित सैन्य कार्रवाई की तैयारी भी माना जा रहा है।
“मैंने अपना मन बना लिया है” – ट्रंप
एयर फ़ोर्स वन में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने कहा कि उन्होंने वेनेज़ुएला के संबंध में एक निर्णय ले लिया है। हालाँकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि यह निर्णय क्या है, लेकिन उनके बयान से साफ़ ज़ाहिर होता है कि अब उनके विकल्प सीमित हैं।
रक्षा सचिव पीट हेगसेथ, जनरल डैन केन और अन्य शीर्ष अधिकारियों ने उन्हें वेनेज़ुएला पर हमले के विभिन्न विकल्पों के बारे में जानकारी दी। इनमें हवाई हमलों से लेकर मादुरो को सीधे निशाना बनाने तक की योजनाएँ शामिल थीं।
वेनेज़ुएला ने भी सैन्य तैयारियाँ बढ़ा दी हैं
अमेरिकी तैनाती के जवाब में, वेनेज़ुएला ने भी अपने सैन्य बलों को सतर्क कर दिया है। सीमा पर बड़ी संख्या में सैनिक, हथियार और रक्षा उपकरण तैनात किए जा रहे हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों की यह गतिविधि एक बड़े संघर्ष का रूप ले सकती है।
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स्थिति बेहद गंभीर है
अमेरिका और वेनेज़ुएला के बीच वैचारिक और राजनीतिक संघर्ष वर्षों से चल रहा है। लेकिन इस बार, माहौल पहले से कहीं ज़्यादा अस्थिर है। अमेरिकी सैनिकों की तैनाती और ट्रंप के बयानों से संकेत मिलता है कि अमेरिका अब केवल प्रतिबंधों या कूटनीति पर निर्भर नहीं है।
आने वाले दिनों में कैरेबियाई क्षेत्र विश्व का सबसे बड़ा भू-राजनीतिक हॉटस्पॉट बन सकता है।

