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मौत की सजा पाये यासीन मलिक को दिल्ली हाई कोर्ट में इस तरह किया गया पेश, जानिये पूरा अपडेट

आतंकवाद के वित्त-पोषण के एक मामले में अलगाववादी नेता यासीन मलिक बुधवार को वीडियो कांफ्रेंस के जरिए दिल्ली उच्च न्यायालय में पेश हुआ। अदालत मलिक को मौत की सजा देने का अनुरोध करने वाली राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की याचिका पर सुनवाई कर रही है। पढ़िए पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर।
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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मौत की सजा पाये यासीन मलिक को दिल्ली हाई कोर्ट में इस तरह किया गया पेश, जानिये पूरा अपडेट

नयी दिल्ली: आतंकवाद के वित्त-पोषण के एक मामले में अलगाववादी नेता यासीन मलिक बुधवार को वीडियो कांफ्रेंस के जरिए दिल्ली उच्च न्यायालय में पेश हुआ। अदालत मलिक को मौत की सजा देने का अनुरोध करने वाली राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की याचिका पर सुनवाई कर रही है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, पिछले हफ्ते उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि यासीन मलिक को निजी पेशी के बजाय तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए पेश किया जाए।

उच्च न्यायालय ने 29 मई को मामले में तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे मलिक को नौ अगस्त को पेश करने के लिए वारंट जारी किया था, जब एनआईए की सजा बढ़ाने की याचिका सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी।

इसके बाद जेल अधिकारियों ने अदालत में अनुरोध दायर कर वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए यासीन को पेश किए जाने की अनुमति मांगी थी और तर्क दिया था कि मलिक एक ‘‘बेहद उच्च जोखिम वाला कैदी’’ है और सार्वजनिक व्यवस्था तथा सुरक्षा बनाए रखने के लिए जरूरी है कि उसे अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश न किया जाए।

हाल ही में यासीन मलिक को उसके खिलाफ अपहरण के मामले में उच्चतम न्यायालय में पेश किया था जिसके बाद भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला को इस ‘‘गंभीर सुरक्षा चूक’’ के बारे में बताया।

उसे 21 जुलाई को अदालत की अनुमति के बिना सशस्त्र सुरक्षाकर्मियों की सुरक्षा में जेल वैन में उच्च सुरक्षा वाले शीर्ष अदालत परिसर में लाया गया था।

इसके बाद दिल्ली जेल विभाग ने शीर्ष अदालत के समक्ष मलिक की शारीरिक उपस्थिति पर चार अधिकारियों को निलंबित कर दिया और चूक की जांच का आदेश दिया।

वर्तमान मामले में 24 मई 2022 को यहां एक निचली अदालत ने मलिक को कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के तहत विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन करावास की सजा सुनाई थी।

सजा के खिलाफ अपील करते हुए एनआईए ने इस बात पर जोर दिया कि किसी आतंकवादी को सिर्फ इसलिए उम्रकैद की सजा नहीं दी जा सकती कि उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया है और उसने मुकदमे का सामना नहीं करने का फैसला किया है।

एनआईए ने मौत की सजा की मांग करते हुए कहा कि यदि ऐसे खूंखार आतंकवादियों को अपराध स्वीकार करने पर मृत्युदंड नहीं दिया जाता है तो सज़ा देने की नीति पूरी तरह ख़त्म हो जाएगी और आतंकवादियों के पास मृत्युदंड से बचने का एक रास्ता होगा।

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